Karpoori Thakur: चुनाव हारने के बाद भी वृद्ध को छुड़ाने थाने चले गए थे जननायक, गरीब सवर्णों को दिया था आरक्षण



विनोद कुमार गिरि, समस्तीपुर: जननायक कर्पूरी ठाकुर कार्यकर्ताओं के सुख-दुख में हमेशा साथ रहने वाले नेता थे। वे एक-एक कार्यकर्ता को उनके नाम से जानते थे। उनके परिवार को जानते थे। बिना बुलाए भी अपने कार्यकर्ता के घर पहुंचकर उसका हाल-चाल लेते रहते थे। उन्होंने कभी भी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं में भेदभाव नहीं किया। जात-पात के चश्मे से अपने कार्यकर्ताओं को नहीं देखा। यही वजह है कि उनके साथ हर जाति और वर्ग के लोग जुड़े थे। कोई कार्यकर्ता यदि मुसीबत में फंस जाए तो उसकी चिंता भी वे करते थे।

कर्पूरी जी के अत्यंत निकट रहने वाले पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं कि समस्तीपुर संसदीय सीट से जननायक कर्पूरी ठाकुर 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीते थे। इससे पहले यहां से लगातार कांग्रेस के उम्मीदवार जीतते रहे थे। कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। 7 साल बाद 1984 में कर्पूरी ठाकुर इस सीट से एक बार फिर संसदीय चुनाव के लिए मैदान में उतरे, लेकिन वे चुनाव हार गए। कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीते। इस चुनाव परिणाम ने कर्पूरी जी को झटका दिया।

परिणाम से आहत कर्पूरी जी अपने अनन्य सहयोगी और तब के विधायक वशिष्ठ नारायण सिंह के आवास पर पहुंचे। शाम हो चली थी। इसी बीच उजियारपुर के कई कार्यकर्ता उनके पास पहुंचे और बताया कि 80 साल के एक वृद्ध को मतदान के दौरान पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इस पर कर्पूरी जी उजियारपुर थाना पहुंच गए और इंस्पेक्टर से बोले- इंस्पेक्टर साहब बात समझ में नहीं आ रही। संभव है, एक नौजवान तो चुनाव के दौरान हमारे पक्ष में कुछ कर सकता है, लेकिन यह वृद्ध क्या कर सकते हैं। वृद्ध को इस आरोप में बंद करना हमारी समझ से परे है। आप खुद को नेपाल अधिराज समझ रखे हैं क्या। किस कानून में लिखा है कि बाप के बदले बेटा को पकड़ लिया जाए और बेटा के बदले बाप को।

कर्पूरी जी की इस बात को सुनकर इंस्पेक्टर ने तुरंत वृद्ध को हाजत से बाहर निकालकर उन्हें उनके घर तक पहुंचा दिया। साथ ही दारोगा पर कार्रवाई करने का आश्वासन भी दिया।
बिहार में जब आरक्षण व्यवस्था लागू की जा रही थी तो कर्पूरी जी ने आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के पुरुषों के लिए तीन प्रतिशत और महिलाओं के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की। उनका मानना था कि उच्च वर्ग में भी कमजोर लोग हैं। उन्हें भी आरक्षण का लाभ देकर आगे बढाया जाना चाहिए। पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह कर्पूरी जी की बातों को कोट कर कहते हैं कि जब आरक्षण व्यवस्था बिहार में लागू की जा रही थी, तो कर्पूरी जी ने कहा था- संविधान बनाने वाले डा. बीआर अंबेडकर जातिवादी नहीं थे, पंडित जवाहर लाल नेहरू जातिवादी नहीं थे, राजेंद्र बाबू जातिवादी नहीं थे, सच्चिदानंद सिन्हा जातिवादी नहीं थे, सरदार बल्लभ भाई पटेल जातिवादी नहीं थे, अच्युतभाई पटवर्द्धन जातिवादी नहीं थे, तो फिर संविधान को लागू करने वाले कर्पूरी ठाकुर कैसे जातिवादी हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि संविधान में उल्लेखित प्रावधानों के तहत ही शैक्षिक और सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़े वर्ग को आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। उच्च वर्ग के भी शैक्षिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को तीन प्रतिशत और महिलाओं के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इससे हर वर्ग और जाति के लोगों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

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