Bihar: तीन बहनें साइकिल मरम्मत का काम कर रहीं ताकि छोटे भाई-बहनों की हो सके बेहतर पढ़ाई, संभाल रहीं दुकान व घर



राजन कुमार, सहरसा: आज हर क्षेत्र में लड़कियां लड़कों को चुनौती दे रही हैं। यहां तक कि विकट विपरीत परिस्थितियों में भी लड़कियां परिवार का सहारा बनने से पीछे नहीं रहतीं। साहस, अपनत्व, महत्वाकांक्षा और हौसलों की ऐसी ही जबर्दस्त मिसाल सहरसा में देखने को मिली, जहां पिता का पैर टूट जाने के बाद तीन बहनें साइिकल की मरम्म्त का काम कर रही हैं, ताकि दो छोटे भाई-बहन प्राइवेट स्कूल में बेहतर पढ़ाई कर सकें। शहर के बटराहा मुहल्ले में आज इन बच्चियों की अपनी पहचान है। मुहल्ले में ही सड़क किनारे गुमटी लगाकर आज ये लड़कियां अपने पिता का हाथ बंटा रही हैं। इनके पिता मिथिलेश ठाकुर को अपनी बेटियों पर गर्व है।

मिथिलेश ठाकुर मूलत: दरभंगा जिला के रहनेवाले हैं। वो वर्ष 1987 में सहरसा आए और यहीं रह गए। वह छह बेटियों और एक बेटे के पिता हैं। इतने बड़े परिवार को साइकिल की मरम्मत का काम कर संभालना कठिन है। इस पर डेढ़ माह पूर्व ही जब उनका पैर टूट गया तो डॉक्टर ने प्लास्टर चढ़ाकर उन्हें आराम करने की सलाह दी। तीन-चार हजार का खर्च पड़ गया जिसमें सारी जमा-पूंजी निकल गई। घर पर खाने के लाले पड़ गए। मिथिलेश की पत्नी बेबी देवी भी घबरा गईं कि घर कैसे चलेगा, इन विपरीत परिस्थिति में कौन कर्ज देगा? ऐसे में इनकी बेटियां आगे आईं।
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छह बहनों में स्वाति चौथे, गौरी पांचवें व छोटी छठे स्थान पर हैं। बड़ी बहनों में प्रीति बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही है। प्रियंका ने 12वीं की परीक्षा दी है। लक्ष्मी 12वीं में है, स्वाति ने नौवीं की परीक्षा दी है, गौरी नौवीं, छोटी दूसरी व भाई रविशंकर पहली कक्षा में है। गौरी व रविशंकर की बेहतर पढ़ाई हो सके, इस वजह से स्वाती, गौरी व छोटी पिता की साइकिल की दुकान पर काम कर रही हैं।
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स्वाति आगे चलकर अग्निवीर, जबकि गौरी व छोटी शिक्षक बनना चाहती हैं। तीनों बहनें बताती हैं कि घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण उन्होंने भी पिता के काम में हाथ बंटाने का निर्णय लिया। परिवार में सदस्य बढ़े तो आवश्यकताएं भी बढ़ीं। बचपन से ही तीनों बहनें काम सीखने लगीं। साइकिल का पंक्चर बनाना हो या टायर लगाना, ये बहनें सब काम कर लेती हैं। तीनों बहनें बचे समय में तीन से चार घंटे रोज पढ़ाई भी करती हैं।
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साइकिल मिस्त्री के रूप में प्रतिदिन 400 से 500 रुपये की आमदनी होती है। जिससे घर का खर्चा चलता है। गौरी कहती है कि पिता का साथ देने से अब दुकान का विस्तार कर लिया गया है। चार पहिया वाहन में हवा भरने से लेकर बड़े वाहनों का पंक्चर भी बनाया जाता है। पहले सिर्फ एक ही दुकान थी, अब दो दुकानें खोल ली हैं। जिससे अब आमदनी भी दुगुनी होने लगी है।
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गौरी बताती हैं कि पिछले महीने पिताजी का पांव टूट गया तो उन्हें प्लास्टर चढ़ाकर घर में आराम करने की सलाह दी गयी। उस अवधि में सीखा गया हुनर काफी काम आया। दुकान पर रहकर लोगों की साइकिल मरम्मत कर घर का खर्चा उठाया। किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत ही नहीं पड़ी।



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