Darbhanga: दरभंगा में विकसित हुई मखाने की नई प्रजाति ‘सुपर सेलेक्शन-वन’, तापमान बढ़ने पर भी नहीं झुलसेगा मखाना



संजय कुमार उपाध्याय, दरभंगा: अब सूरज का ताप बढ़ने पर भी मखाना नहीं झुलसेगा और ना ही किसानों की मेहनत पर आंच आएगी। वहीं, बुआई में भी 40 प्रतिशत कम बीज लगेंगे और 20-25 प्रतिशत उत्पादन बढ़ने के साथ इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होगी। यह सब संभव किया है मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा ने, जिसने सात साल के शोध के बाद मखाने की अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली प्रजाति ‘सुपर सेलेक्शन-वन’ विकसित की है। खेत परीक्षण सफल होने के बाद किसानों को यह प्रजाति उपलब्ध कराने की सैद्धांतिक सहमति बन गई है।






विभागीय स्वीकृति के लिए इसे अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूर्वी क्षेत्र पटना भेजा गया है। किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से विज्ञानी डॉ. बीआर जाना ने वर्ष 2015 में अधिक प्रतिरोधक क्षमता युक्त मखाने की प्रजाति पर काम शुरू किया था, जिसमें उन्‍होंने मास सेलेक्शन विधि से स्वर्ण वैदेही, उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में लगाए जाने वाले परंपरागत और मणिपुरी मखाने के फूलों का संकरण विधि से परागण कराकर नया बीज तैयार किया। इन बीजों को एक वर्गमीटर में लगाकर प्रति पौधा उत्पादन देखा गया।
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इसके बाद सर्वाधिक उत्पादन वाले पौधे का उपयोग सुपर सेलेक्शन-वन बीज के रूप में किया गया। फिर अलग-अलग तापमान में इसकी बुआई कर प्रयोगशाला परीक्षण किया गया। इस दौरान फल और फूल के गुणों पर शोध किया गया। प्रोटीन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और आकार के मामले में श्रेष्ठ परिणाम आने पर वर्ष 2021 में जाले कृषि विज्ञान केंद्र के साथ दस किसानों को यह बीज खेत परीक्षण के लिए दिए गए, जिसमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन पांच से सात क्विंटल तक अधिक हुआ। वहीं, इसके दाने भी स्वर्ण वैदेही प्रजाति से 20 प्रतिशत बड़े मिले। इस सत्र में भी 20 से अधिक किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
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अभी बिहार के अलावा पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में मखाने की खेती होती है। अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक के अनुसार, सुपर सेलेक्शन वन प्रजाति से परंपरागत के अलावा मखाने की खेती के नए क्षेत्र विकसित हो सकते हैं।इसके लिए काली व दोमट मिट्टी यानी वैसी मिट्टी, जिसमें दो से तीन फीट पानी का ठहराव अप्रैल से जुलाई के बीच रह सके, उपयुक्त है।
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मखाने के फूल जून-जुलाई में आते हैं। तब तापमान 34 डिग्री या अधिक होता है। सामान्य प्रजाति के मखाने के फूल इस तापमान पर झुलसा रोग की चपेट में आ जाते हैं, जिससे उत्पादन दो तिहाई रह जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता 20 प्रतिशत अधिक होने के कारण सुपर सेलेक्शन वन प्रजाति  में यह तापमान सहने की क्षमता है और उसके फूल में झुलसा रोग नहीं लगता।





इसकी गुड़ी (मखाने का फल) से बड़े लावे 70 प्रतिशत निकलते हैं, जबकि अन्य प्रजाति में 40 से 50 प्रतिशत। इसमें प्रोटीन नौ प्रतिशत है, जबकि स्वर्ण वैदेही में 8.3 प्रतिशत। स्वर्ण वैदेही प्रजाति का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 30 क्विटंल है तो सुपर सेलेक्शन वन का 35 से 38 क्विंटल। एक हेक्टेयर में स्वर्ण वैदेही का 20 से 22 किलो बीज या छह हजार पौधे लगते हैं, जबकि सुपर सेलेक्शन वन के बीज 12 से 14 किलो या 4200 पौधे।



डॉ. इंदुशेखर सिंह, प्रधान विज्ञानी सह अध्यक्ष, मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा
केंद्र के विज्ञानियों ने सुपर सेलेक्शन-वन बीज की गुणवत्ता की जांच की है, जो उन्नत है। इस शोध को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पटना भेजा जाएगा, जहां सीड वेरायटी रिलीज कमेटी नाम व शोध को अनुमति देगी। राज्य कृषि विभाग की सहमति के बाद यह प्रजाति  किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता के लिए शोध को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली भी भेजा जाएगा।  -डॉ. इंदुशेखर सिंह, प्रधान विज्ञानी सह अध्यक्ष, मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा




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