Bagaha: बाघ-तेंदुए का पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार, वीटीआर में हर साल मर रहे वन्यजीव, सुरक्षा पर सवाल



जागरण संवाददाता, बगहा। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) के रमपुरवा गांव के समीप गन्ने के खेत में मिले बाघ (रॉयल बंगाल टाइगर) और तेंदुए के शव का शुक्रवार को पशु चिकित्सकों व अधिकारियों की मौजूदगी में कोतराहां वन परिसर में पोस्टमार्टम कर अंतिम संस्कार किया गया। दोनों के बिसरे को जांच के लिए देहरादून और बरेली भेजा जा रहा है। वहां से रिपोर्ट आने के बाद मौत के कारणों का स्पष्ट पता लगेगा। शुरुआती जांच में वीटीआर प्रशासन करंट लगना मौत का कारण बता रहा है।

गुरुवार की देर शाम ग्रामीणों की सूचना पर पहुंची वन विभाग की टीम ने वीटीआर के रमपुरवा के पास गन्ने के खेत में बाघ का जमीन में दफन किया शव व कुछ दूरी पर एक तेंदुए का शव बरामद किया था। नर बाघ की उम्र लगभग सात वर्ष व तेंदुए की दो वर्ष है। बताया जा रहा है कि शिकारियों ने सूअर व अन्य जानवरों को मारने के लिए तार बिछाया था। इसमें करंट प्रवाहित था, जिसकी चपेट में बाघ आ गया। इससे बाघ की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।
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शिकारियों ने बाघ को पास के गन्ने के खेत में दफना दिया। पशु चिकित्सक डा. मनोज की मौजूदगी में दो सदस्यीय टीम ने पोस्टमार्टम किया। इस दौरान वन प्रमंडल दो के डीएफओ व अन्य अधिकारी मौजूद थे। अधिकारियों ने बताया कि दोनों वन्यजीवों के सभी अंग सुरक्षित हैं।
इस बावत वीटीआर के सीएफ (मुख्य वन संरक्षक) नेशामणि ने बताया कि प्रथम दृष्टया बाघ और तेंदुए की मौत बिजली का करंट लगने की वजह से होना प्रतीत हो रही है। देहरादून व बरेली से रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के वास्तविक कारणों की सही जानकारी मिल सकेगी। बाघ की मौत तीन दिन पहले होने की आशंका जताई गई है।
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टाइगर रिजर्व का तमगा मिलने के बाद भी वीटीआर (वाल्मीकि टाइगर रिजर्व) प्रशासन बाघों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं हो पा रहा है। बाघों की सुरक्षा के लिए चाहे जितना भी दावा करे, लेकिन सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़ा हो रहा है। बाघों की मौत के बाद विभाग यह कहकर चुप हो जाता है कि जांच के बाद ही मौत के कारणों का पता चलेगा। वीटीआर में बाघ व तेंदुए के मरने की यह पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी कई घटनाएं हो चुकी हैं।
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बाघों के आशियाना बसाने और कुनबा बढ़ाने के नाम पर सरकार ने पानी की तरह पैसे बहाए, लेकिन कभी ट्रेन, आग, करंट तो कभी शिकारियों ने बाघों की जान ली। आंकड़े यह बताते हैं कि हर साल किसी न किसी कारण से टाइगर रिजर्व के एक बाघ की मौत हुई है। यदि वीटीआर प्रशासन सुरक्षा को लेकर गंभीर होता तो बाघों की संख्या 100 से अधिक होती।
वर्ष 2000 में वाल्मीकिनगर में एक बाघ की मौत हो गई थी। वर्ष 2007 में मदनपुर वन क्षेत्र में एक बाघ की मौत ट्रेन से कटकर हो गई। उसी साल एक बाघ की मौत आयरन ट्रैप में फंसने से हो गई। वर्ष 2008 में गोवर्धना जंगल में एक बाघ की मौत हुई। वर्ष 2010 में मदनपुर वन क्षेत्र में एक बाघ की मौत आग की चपेट व वर्ष 2013 में भी एक बाघ की मौत ट्रेन की चपेट में आने से हो गई। वर्ष 2014 में भी मदनपुर जंगल में एक बाघ की मौत हो गई। उसी साल हरनाटांड के नौरंगिया दोन में एक बाघ की मौत हो गई।
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वर्ष 2016 में गोनौली वन क्षेत्र में जहर देकर चार बाघों का शिकार कर लिया गया था। वर्ष 2019 में मंगुराहा वन क्षेत्र में एक बाघ की मौत हो गई थी। उसी साल रघिया जंगल में भी एक बाघ की मौत हुई थी। वर्ष 2021 में भी गोबर्धना में एक तथा वाल्मीकिनगर में दो बाघों की मौत हुई। 2022 में वाल्मीकिनगर के कौलेश्वर मंदिर के समीप एक मादा शावक की मौत हो गई थी। अब साल 2023 के फरवरी में बाघ व तेंदुए की मौत हुई है।

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