बगहा: 'मटका खाद' महिला किसानों के लिए खोल रही समृद्धि के द्वार, जैविक खेती से स्वस्थ समाज का दे रहीं संदेश



माधवेंद्र पांडेय, बगहा। अनुमंडल के ठकराहा प्रखंड की तीन दर्जन महिला किसान मटके की खाद से समृद्धि की खेती कर रही हैं। ये बिना लागत अपने खेतों की फसलों की उत्पादकता बढ़ाकर आर्थिक समृद्धि हासिल कर रही हैं।
मटका खाद की बदौलत आज इनके यहां कई प्रकार की हरी सब्जियां-मशरूम आदि का उत्पादन हो रहा है। इस पद्धति से खेती प्रारंभ करने के बाद करीब दो माह में ही आमदनी प्रारंभ हो गई है।
गंडक नदी के दियारा में स्थित बालू वाले खेतों में जो लोग गन्ना, धान, गेहूं आदि पारंपरिक खेती करते थे। वे अब सब्जी आदि की आधुनिक पद्धति से व्यवसायिक खेती करने लगे हैं।

क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इससे प्रेरणा मिली है। इनके उत्पादों को बाजार भी मिल गया है। स्थानीय बाजार के अलावा समीपवर्ती यूपी व आसपास के लोग भी अब इनकी फसल-उत्पादों के खरीदार बन गए हैं।
इस खाद को तैयार करने के लिए एक मटके की आवश्यकता होती है। इसमें प्रति दस लीटर पानी के अनुसार चने का सात ग्राम सत्तू, सात ग्राम गुड़, आधा लीटर गोमूत्र, दो किलो गोबर, 50 ग्राम अंडे का छिलका मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है।
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इसे मिट्टी के घड़े में डालकर सूती कपड़े से मुंह बंद कर दिया जाता है। 21वें दिन मटके में खाद तैयार हो जाती है। एक मटके में 10 लीटर खाद तैयार होती है तथा एक लीटर खाद में 10 लीटर पानी मिलाकर खेतों में डाला जाता है।
इसमें प्रति किलोग्राम 10 प्रतिशत नाइट्रोजन, सात से आठ प्रतिशत फास्फोरस, छह से आठ प्रतिशत पोटाश के अलावा जिंक, कैल्शियम आदि तमाम अवयव होते हैं।
प्रति लीटर खाद में 10 लीटर पानी मिलाकर खेतों में डाला जाता है। गोरखपुर की एक संस्था के द्वारा क्षेत्र की महिलाओं को दो माह पहले खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया था।
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नारो देवी, प्रेमशीला देवी, राजमती देवी, संगीता कुमारी, कलावती देवी, प्रेमा रानी, रमावती देवी, सुशीला देवी हरिशंकर प्रसाद, पंकज कुमार आदि किसानों ने कहा कि पहले हम लोग पारंपरिक खेती करते थे। जिससे साल में एक बार उपज होती थी।
गंडक नदी का दियारा होने के कारण हमेशा बाढ़ व कटाव का भय बना रहता था, लेकिन इस विधि की जानकारी मिलने के बाद हम लोगों ने पारंपरिक खेती से अलग हटकर व्यवसायिक खेती करना प्रारंभ कर दिया है।
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स्थिति यह है कि अब रसायन सहित कृषि उत्पादों का सेवन कर स्वास्थ रहने के साथ हर महीने मशरूम समेत विभिन्न खेती कर पांच से सात हजार रुपये प्रतिमाह की कमाई भी कर रहे हैं।
गन्ना, गेहूं व धान आदि की खेती में भी अब रसायनिक खाद व कीटनाशक का उपयोग बंद हो गया है। इसका परिणाम है कि अब खेतों में चिड़िया भी आने लगी हैं। साथ ही शुद्ध फसल मिलने से निरोग होने का संदेश भी समाज को पहुंच रहा है।
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प्रारंभिक दौर में सिर्फ सब्जी की खेती में इसका प्रयोग किया गया है। सब कुछ ठीक रहा तो आगामी धान, गेहूं व गन्ना सहित अन्य फसलों की खेती में भी इसका उपयोग किया जाएगा।
पश्चिम चंपारण के बगहा में मटके की खाद से समृद्धि की खेती हो रही है। ठकराहां के आधा दर्जन गांवों की 30 से अधिक महिलाएं मटका खाद का निर्माण कर जैविक खेती कर रही हैं। इसकी बदौलत आज इनके यहां तमाम प्रकार की हरी सब्जियां व मशरूम आदि का उत्पादन हो रहा है। कम लागत में अच्छी पैदावार हो रही है। - प्रेमशंकर सिंह, कृषि विशेषज्ञ


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