तमिलनाडु में बिहारियों पर हमले: सच है क्या? हिंसा से सहमे लोगों की उड़ी नींद, दर्द बयां कर रही इनकी कहानी



संवाद सहयोगी, जमुई। तमिलनाडु में हिंसा भड़कने की खबर से जमुई के हजारों परिवार की नींद उड़ गई है। अपनों की खैरियत को लेकर कोई सरकार से गुहार लगा रहा है तो कोई सलामती की दुआ कर रहा है।
ऐसे ही लोगों में शहर के सिरचंद नवादा की बसंती देवी भी शामिल हैं। बीते एक सप्ताह से इनकी आंखों से नींद और दिल का चैन गायब हो गया है। उनका पुत्र मजदूरी करने तमिलनाडु गया था।
अब वहां से हिंसा भड़कने की खबर आ रही है। 15 दिन पहले ही काम की तलाश में राजू गया था। लिहाजा उसे तमिल का अक्षर ज्ञान भी नहीं है।

राशन पानी के बगैर वह सिरचंद नवादा के ही 15 अन्य युवकों के साथ कमरे में फंसा है। कुछ ऐसी ही स्थिति सिकंदरा प्रखंड अंतर्गत पोहे पंचायत में कई परिवारों की है।
बताया जाता है कि यहां पोहे, पिरहिंडा, सहसराम, रामडीह आदि गांव से बड़ी संख्या में लोग बरसों से तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे हैं। पोहे पंचायत महज बानगी भर है।
कमोबेश ऐसी ही स्थिति सिकंदरा, अलीगंज एवं जमुई सदर प्रखंड के प्रायः हर गांव और टोले की है। शायद कोई गांव और टोला बचा हो, जहां का युवक अपने पसीने से वहां की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ नहीं कर रहा हो, लेकिन अब उन्हीं युवकों के खून से तमिलनाडु की धरती लाल हो रही है।
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सरकार की ओर से तमिलनाडु में हिंसा से संबंधित वीडियो को फर्जी बताकर लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की गई है। इसके विपरीत सिकंदरा थाना क्षेत्र से ही दो युवकों की मौत तथा दो के घायल होने की खबर सरकार के अधिकारियों के दावे पर सवाल खड़े कर रही है।
अभी 10 दिन पूर्व ही त्रिपुर में धधौर निवासी कामेश्वर यादव के पुत्र पवन यादव की हत्या 21 फरवरी को नारियल काटने वाले धारदार हथियार से कर दी गई थी। इस दौरान बचाने की चेष्टा कर रहे भाई नीरज के सिर पर भी धारदार हथियार से प्रहार किया गया था।
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मौके पर उसके ममेरे भाई भुल्लो निवासी बलिराज को भी मारपीट कर घायल कर दिया गया था। सिकंदरा रविदास टोला के युवक की संदिग्ध मौत को भी लोग हत्या से जोड़ रहे हैं। कहते हैं कि युवक का शव 26 फरवरी को फंदे से झूलता हुआ मिला था।
पोहे गांव में किसी तरह वापस लौटे संजू मांझी, धर्मेंद्र कुमार आदि ने बताया कि वो लोग जैसे-तैसे भागकर यहां पहुंचे हैं। वहां की स्थिति ठीक नहीं है। मजदूरी के सवाल पर बिहारियों को मारा काटा जा रहा है।

हिंदी भाषी मजदूरों को 1200 की जगह 800 रुपये मजदूरी लेने के लिए बाध्य किया जाता है। ऐसा नहीं करने के बाद ही हिंसा भड़क उठी है।
वापसी के रास्ते में ट्रेन पर सवार अरमान भी कुछ ऐसा ही बताते हैं। मंझवे निवासी अशोक, लाहावन निवासी राजेश सहित अन्य कई मजदूरों ने भी बताया कि वे लोग अपने डेरा से बाहर नहीं निकल रहे हैं। खौफ के साए में समय कट रहा है।
पिरहिंडा गांव निवासी रंजन कुमार बताते हैं कि सुरक्षा कारणों को लेकर मजदूरों को कंपनी से बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है। जो मजदूर वापस लौटना चाह रहे हैं, उनके हिसाब में भी आनाकानी की जा रही है।

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