यूपी, बंगाल समेत 4 राज्यों को ओल खिला रहा समस्तीपुर, आठ लाख क्विंटल से अधिक का उत्पादन; किसानों के चेहरे खिले



समस्तीपुर, विनोद कुमार गिरि। ''कियो-कियो खाइये भादवक ओल....की खाय राजा, की खाय चोर... इस कहावत पर खिल-खिलाते हुए किसान केदार महतो ओल की खेती की तैयारी में जुटे हैं। कभी ओल का गुणगान करते हैं तो कभी मिथिला क्षेत्र में कही जानेवाली कहावत से ओल का पारंपरिक ज्ञान देते हैं। कहते हैं, भादो का ओल किसी-किसी को नसीब होता है या तो राजा या चोर।
मतलब साफ है, कभी चौठचंद्र तो कभी दीपावली में प्रमुखता से खाए जाने वाले ओल की खेती अब घर की घेराई से निकलकर व्यावसायिक रूप ले चुकी है। बिहार का समस्तीपुर अकेले चार राज्यों को सब्जी और बीज उपलब्ध करा रहा है। अंडाहा के केदार महतो, माधोडीह के महेन्द्र गिरि से लेकर बाजिदपुर के प्रमेश कुशवाहा तक ओल की खेती की तैयारी में हैं।

जिले में बीते सात-आठ वर्षों में जहां 100 से 150 हेक्टेयर में ओल की खेती होती थी, आज 2000 हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में हो रही है। राज्य सरकार द्वारा खेती को प्रोत्साहन देने की घोषणा के बाद अगले पांच वर्ष में रकबे में दोगुना वृद्धि की उम्मीद है।

बता दें कि पिछले सात-आठ सालों में जिले में ओल की खेती का रकवा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इस वजह से उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है। पहले जहां महज सौ से डेढ़ सौ हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी, वहीं आज दो हजार हेक्टेयर से ज्यादा में इसकी खेती हो रही है। जिले में 8 लाख क्विंटल से ज्यादा ओल का उत्पादन हो रहा है। यह नकदी फसल है।
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किसान खेत से ओल की खुदाई करता भी नहीं है कि व्यापारी पहले से ही खरीदारी के लिए पहुंचने लगते हैं। ओल का भाव भी किसानों को अभी बेहतर मिल रहा है। अभी जिले में 2000 से लेकर 2200 रुपये प्रति क्विंटल किसान ओल बेच रहे हैं, जबकि दो साल पहले 16 सौ से 18 सौ रुपये प्रति क्विंटल इसका भाव था।

समस्तीपुर में उत्पादित ओल का पचास फीसदी सब्जी के रूप में उत्तर प्रदेश भेजा जाता है। बीज के रूप में चालीस प्रतिशत पश्चिम बंगाल और दस प्रतिशत झारखंड और आंध्र प्रदेश को आपूर्ति की जाती है। बता दें कि ओल का उत्पादन महज चार राज्यों में ही होता है। इसमें बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक शामिल है।
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समस्तीपुर के सातनपुर में ओल का सबसे बड़ा आढ़त है। जिले के पचास प्रतिशत से अधिक ओल यहीं पर बेचा जाता है। मां भवानी ट्रेडर्स के संचालक पंकज कुमार कहते हैं कि अगले तीन-चार सालों में ओल का उत्पादन दो से तीन गुणा बढ़ जाएगा। किसान को उसके उत्पाद का उचित मूल्य के साथ-साथ हाथ में नकद मिल जाता हैं। इस वजह से किसान इसकी खेती कर खुश हैं। धीरे-धीरे ओल की खेती का रकवा बढ़ता जाएगा।

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राज्य सरकार ने हल्दी, अदरक के साथ-साथ ओल की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए पचास फीसदी तक अनुदान देने की घोषणा की है। पहले ओल की खेती पर अनुदान की व्यवस्था नही थी। एकीकृत उद्यान विकास योजना के तहत भागलपुर, सहरसा, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, बेगूसराय, एवं खगडिया जिले के किसानों को इस योजना का लाभ लेने के लिए उद्यान निदेशालय की वेबसाइट पर आनलाइन आवेदन करने के लिए कहा गया है।

किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान का प्रविधान किया गया है। अनुदान लेने के लिए एक किसान को कम से कम 90 डिसमिल यानि एक एकड़ में खेती करनी होगी। एक किसान को अधिकतम दो यूनिट यानि दो एकड़ का लाभ मिल सकता है। एक यूनिट की खेती में किसानों को लागत मूल्य 82 हजार रुपये आएगा, जिसमें 41 हजार रुपये किसान को सरकार की ओर से अनुदान मिलेगा। सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिलने के बाद ओल की खेती को जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा।

समस्तीपुर के सहायक निदेशक उद्यान प्रशांत कुमार ने बताया कि जिले में करीब दो हजार हेक्टेयर से ज्यादा में ओल की खेती हो रही है। दो साल पहले 1854 हेक्टेयर में खेती हुई थी। धीरे-धीरे ओल की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। सरकार ओल की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए पिछले साल से पचास फीसदी तक अनुदान दे रही है।

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