सिवान का सोनू बना 'बावर्ची': बड़ी नौकरी का मोह छोड़ बना ठेले वाली दुकान का मालिक, रोज कमा रहा 30 हजार



जागरण संवाददाता, सिवान: बेरोजगार चाय वाला, इंजीनियर बर्गर, देसी भोजन आदि नामों से सड़क किनारे फुटपाथ पर ढेरों स्टॉल देखने को मिल रहे हैं। इन स्टॉल पर लोगों का जमावड़ा लगा रहता है, जिसका मुख्य कारण स्टॉल के नाम और यहां मिलने वाला फूड जायका के साथ ही इनके संचालकों की शिक्षा और उम्र भी है।
कोई ग्रेजुएट कर बेरोजगार है तो किसी ने इंजीनियरिंग या एमबीए कर रोजगार नहीं मिलने पर खुद का स्टार्टअप शुरू किया है। इन्हीं में से एक हैं शहर के दक्षिण टोले स्नातक पास युवा सोनू गुप्ता, जिन्होंने पांच साल नौकरी की और फिर कोरोना काल में अपने शहर लौट बावर्ची बन गया।

सोनू बड़ी नौकरी की उम्मीद छोड़ अपने काम का खुद मालिक बनने का सपना साकार करते हुए तरक्की कर रहा है। सोनू ने नवंबर, 2022 में अपनी 'बावर्ची' नाम से ठेले पर दुकान खोलकर लोगों को नॉन वेज के लजीज व्यंजनों का स्वाद परोसना शुरू किया था। शुरुआत में हर रोज 1000 से 1500 रुपये कमा लेता था, लेकिन अब आमदनी बढ़कर 25 हजार से 30 हजार प्रतिदिन हो रही है।
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सोनू बताता है कि रेस्तरां से सस्ते और स्वाद में लजीज व्यंजन मिलने का ही नतीजा है कि लोग अब फुटपाथ पर लगे स्टॉल पर खड़े होकर जायका लेते हैं।
साल 2015 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर सोनू मैयहर में एक एनजीओ के माध्यम से परिवहन विभाग द्वारा चलाए जा रहे सड़क सुरक्षा अभियान के लिए पांच साल तक रिफलेक्टर लगाने का कार्य किया। साल 2020 में कोरोना काल में उसका काम बंद हुआ तो वह घर आ गया। इसके बाद उसने कई जगह नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कहीं भी इतना पैसा नहीं मिल पाता, जिससे परिवार को दो वक्त का खाना नसीब हो जाए।
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इस बीच, सोनू ने गोरखपुर में एक ठेले पर युवाओं को फास्ट फूड बेचते देखा। सोनू हाजीपुर लौटा और पहले एक संस्थान में फास्ट फूड और अन्य तरह के पकवान बनाने की प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली। फिर दो लाख रुपये जुटाकर ठेले पर 'बावर्ची नॉन वेज' नाम से दुकान लगानी शुरू कर दी। शुरुआती दौर में कई लोगों ने ताने मारे तो किसी ने फब्तियां भी कसीं, लेकिन वह चुपचाप खड़ा रहता और ग्राहकों को इंतजार करता रहता, लेकिन अब उसके यहां लजीज व्यंजन चखने वालों की लंबी लाइन लगी रहती है।


पांच युवाओं को दे रहा रोजगार
छह महीने पहले ठेले पर नॉन वेज फूड का रोजगार शुरू करने वाला सोनू अब एक दुकान का मालिक बन गया है। मौजूदा वक्त में वह पांच युवाओं को रोजगार भी दे रहा है। इससे उसके यहां काम करने वाले युवा भी रोजगार परक बन गए हैं। स्टार्टप के दौरान जो चुनौतियों का सामना उसे करना पड़ा था, अब वहीं चुनौती उसकी सफलता बन गई है।


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