रेडीमेड गारमेंट की फैक्ट्री लगा महिलाओं को रोजगार दे रहे हैं दो भाई

छपरा : गड़खा के बंगारी गांव के मो. अजीज अंसारी एवं मो. सलापत अंसारी गांव के साथ-साथ जिले के लोगों के लिए आज एक उदाहरण बने हुए हैं। उनके द्वारा गार्मेंट की फैक्ट्री लगा काफी संख्या में लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। एक कंपनी में कारीगरी का काम छोड़कर सारण जिले के एक छोटे से गांव बंगारी में आ गये। यह बात वर्ष 2004 की है। उस समय मो. बंधुओं ने यह नही सोचा होगा कि एक छोटे से कमरे में शुरू किया गया इनका कारोबार आज इतना बड़ा रूप ले लेगा कि वे लोगों को रोजगार देंगे। मो. अजीज एवं मो. सलाफत कहते है कि दिल्ली में एक कंपनी में कारीगर के रूप में कार्य करने के दौरान छुट्टी की बहुत दिक्कत थी। कंपनी में छुट्टी नहीं मिलने के कारण किसी के बीमार एवं शादी-ब्याह में भी घर नहीं आ पाते थे और नौकरी में इतना वेतन नही था कि दिल्ली जैसे महानगर में परिवार एवं बाल-बच्चों के साथ रहा जाए। हम तो खुद ही तंग कमरों में रहकर कार्य करते थे। मां की तबीयत खराब होने पर कंपनी में छुट्टी नहीं मिली तो नौकरी छोड़कर खुद का कार्य करने का मन बनाया।

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गांव आकर बच्चों का जैकेट, पैंट एवं फ्राक बनाने का कार्य शुरू किया। उस समय रात -दिन एक करके रेडीमेड कपड़ा तैयार करते थे। एक मशीन थी उससे कार्य करके हमने बाइक पर फेरी लगाकर रेडीमेंडकपड़ा बेचने का कारोबार शुरू किया। गांव में घूम -घूम कर कपड़ा बेचकर हमने एक और मशीन खरीद ली। उसके बाद गड़खा एवं छपरा के बाजारों में जाकर कपडा दुकानदारों को देने लगे। ठंडा के दिन में ट्रैकशूट, जैकेट, बच्चों का शूट, जींस एवं गर्मी में हाफ पैट, पजामा एवं बच्चों का कपड़ा हम बेचने लगे। जिससे इनकम बढ़ने लगा।
करोबार बढ़ने के बाद गांव के लोगों को रोजगार देने का निर्णय लिया ताकि वे भी दिल्ली एवं पंजाब कमाने के बजाय अपने गांव में ही रोजगार प्राप्त कर अपने परिवार का भरण-पोषण करें। उसके लिए गांव के लोगों को रोजगार देने का निर्णय लिया। लेकिन बाद में गांव की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्हें मशीन बनाने की ट्रेनिग देकर रोजगार दिया, ताकि महिलाएं को आर्थिक स्वावलंबन मिलेगा तो परिवार को ज्यादा लाभ होगा। जिस घर में परिवार कमाने में इतना सक्षम नहीं है उन्हें मशीन चलाने की ट्रेनिग देकर रोजगार दिया जा रहा है। गड़खा प्रखंड के बंगरा, मिठ्ठेपुर, मोहम्मदपुर, नारायणपुर, हकमा आदि गांव के करीब ढाई सौ से अधिक महिलाएं कार्य कर रही है। जो आज आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो चुकी है। उनके घर के चूल्हे अब आसानी से जलते हैं।
Posted By: Jagran
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