जब बेटियां ही नहीं रहेगी तो बहू कहां से लाओगे

सहरसा। कुछ दिन पहले बसनही थाना क्षेत्र में झाड़ी में फेंकी एक नवजात बच्ची को लोगों ने बरामद किया। लेकिन कहां से लाकर उसे फेंका गया था यह पता नहीं चल पाया। स्थानीय लोगों ने उस नवजात को सहारा दिया। इसी तरह सदर थाना क्षेत्र में एक झाड़ी में फेंकी नवजात लड़की मिली। स्थानीय लोगों ने इलाज कराकर उसे दत्तक ग्रहण संस्थान को सौंप दिया।

सुपौल सदर के परसरमा गांव के बांसबाड़ी में नवजात बच्ची मिली थी। सुपौल के ही मरौना दक्षिण पंचायत में एक पुलिया के समीप नवजात बच्ची का शव मिला था। यह तो एक बानगी है ऐसी कई घटना हमें अक्सर देखने व सुनने को मिलती है। कहने को तो सरकार व लेकर समाज तक इस बेटी बचाओ का नारा दे रही है। लेकिन इस तरह की घटना जबतक पूरी तरह नहीं रुकेगी बेटियों की संख्या कम होती जाएगी।
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अब यह नहीं है कि बेटियां बोझ है। वह हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है। लेकिन कोसी अंचल में पुरुषों की तुलना में बेटियों की घट रही संख्या कई सवाल पैदा कर रहा है। दत्तक ग्रहण संस्थान की अगर बात करें तो 96 फीसद बच्ची ही इसमें रहती है। वैसे, दत्तक ग्रहण संस्थान में पलने वाली बेटियों को देश ही नहीं विदेश के लोग भी अपना रहे हैं। 2011 की जनगणना पर गौर करें तो सहरसा में एक हजार पुरुष पर 906, सुपौल में 925, मधेपुरा में 914, अररिया में 921, कटिहार में 916 बेटियां थी। उस आंकड़ों के बाद एक एनजीओ के हालिया सर्वे में बेटियों की संख्या में और कमी आई है।
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चोरी-छिपे अब भी हो रहा है भ्रूण हत्या
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भ्रूण के परीक्षण पर पूरी तरह रोक रहने के बाद भी चोरी-छिपे अब भी भ्रूण परीक्षण हो रहा है। कई ऐसे अल्ट्रासाउंड केन्द्र हैं जो स्वास्थ्य विभाग से निबंधित नहीं है। इन संस्थानों में विशेषज्ञ चिकित्सक की जगह कोई जानकार रहते हैं और वो इस तरह की जांच कर रहे हैं। जिसके बाद बच्ची रहने पर कोख में ही वह सुरक्षित नहीं रह पाती है।
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गरीबी, अशिक्षा व दहेज है वजह
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इस इलाके में एक कहावत है बेटा पैदा हुआ तो धरती से हाथ सवा हाथ ऊपर हो जाता है और बेटी हुई तो सवा हाथ नीचे चला जाता है। कोसी कंसोर्टियम के भगवानजी पाठक कहते हैं कि समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक बदलाव आ रहा है। लेकिन अब भी गरीबी, अशिक्षा व दहेज की वजह से बेटी को लोग बोझ समझते हैं। लोगों को समझना होगा कि बेटा व बेटी में कोई फर्क नहीं है। बेटी बचाओ अभियान से जुड़ी पुष्पलता सिंह कहती है कि सरकार के प्रयास से दहेज, भ्रूण हत्या समेत अन्य मामलों में सुधार आया है। लेकिन लोगों को अपनी नजरिया बेटियों के प्रति बदलने की जरूरत है।
Posted By: Jagran
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