जन्म दिन, श्राद्ध एवं ब्याह के मौके पर लगाते हैं पौधे

सहरसा। पर्यावरण संरक्षण के लिए 70 वर्षीय ओमप्रकाश गुप्ता वृक्ष पुत्र के नाम से जाने जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है। इन्हें सिर्फ पता चलना चाहिए कि आज किसी का जन्मदिन है बस वे दो पौधे लेकर उनके घर पहुंच जाते है और उन्हीं के हाथों से पौधा लगाते हैं। इसके अलावा शहर में किसी के यहां श्राद्ध हो या ब्याह उन्हें इस मौके पर फलदार पौधा उनके घरों में लगाते हैं।

शहर के डीबी रोड निवासी ओमप्रकाश गुप्ता लोगों के घरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि सरकारी कार्यालयों, स्कूलों व मंदिरों में जा-जाकर पौधरोपण करते हैं और लोगों को इसके लिए प्रेरित करते हैं। इनके इस कार्य में इनकी पत्नी रंभा गुप्ता मदद करती हैं। वे कहते हैं कि पौधा लगाने की प्रेरणा हमें गायत्री शक्तिपीठ से मिली। जिनकी प्रेरणा से वे खुशी हो या गम, लोगों के बीच पौधा बांटते हैं।
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कोसी काडा विभाग में कलाकार पद से सेवानिवृत्त हुए ओमप्रकाश गुप्ता वर्ष 2002 से ही पौधा लगा रहे हैं। वे कहते हैं कि अब तक करीब 40 हजार पौधे विभिन्न जगहों पर लगा चुके हैं। वो फलदार पौधों के अलावा औषधीय पौधों का भी वितरण करते है। अब तो कई जगहों से लगाए गए पौधों ने वृक्ष का रूप ले लिया है। उसका फल लाकर जब लोग उन्हें देते हैं तो खुशी दुगुनी बढ़ जाती है। वो कहते हैं कि पौधों की देखभाल संतान की तरह करनी चाहिए। क्योंकि यही पौधे हमें जीवन प्रदान करते हैं। अगर पौधे नहीं रहे तो आक्सीजन मिलना बंद हो जाएगा।
इनसेट--कई बार हो चुके हैं सम्मानित
-ओमप्रकाश गुप्ता को पर्यावरण संरक्षण के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। कोसी प्रमंडल के आयुक्त सी लल सोता वर्ष 2004 में इन्हें पौधारोपण के लिए सम्मानित कर चुके हैं। वहीं वर्ष 2016 में आयुक्त टीके घोष पर्यावरण संरक्षण के लिए सम्मानित किया। वहीं गायत्री शक्तिपीठ इन्हें वृक्ष पुत्र से सम्मानित कर चुके हैं। गौरतलब है कि गायत्री शक्तिपीठ में कोई उत्सव हो तो शहर के किसी सार्वजनिक स्थल पर फलदार व औषधीय पौधों का वितरण करते हैं। फलदार पौधों में बेल, आम, आंवला, अमरूद, अनार, कटहल, कदम्ब एवं औषधीय पौधों में एलोवेरा, घृतकुमारी, नीम, तुलसी, अर्जुन, जेट्रोफा आदि पौधा का वितरण करते हैं। वे कहते हैं कि पत्थलचटटा- पत्थरचूड़ पौधा सैकड़ों परिवार में लगा चुके हैं। इसके सेवन से पेट में पथरी की शिकायत कभी नहीं रहती है। वे कहते हैं कि मरने के अंतिम क्षण तक मैं पौधा लगाना चाहता हूं। पौधा लगाने के बाद मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है।
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ओम प्रकाश के कार्य में उम्र नहीं बनती बाधक
ओमप्रकाश गुप्ता के कार्य के दौरान उम्र बाधक नहीं बनती है। वे अभी भी सबेरे उठकर आसपास जाकर लोगों के घरों में छतों पर पौधा लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। खुद से पौधा देकर उनसे लगवाते हैं और प्रतिदिन जाकर पौधा का हाल चाल लेते हैं। इतना ही नहीं वे गांव- गांव जाकर पौधा लगाने के प्रति लोगों को जागरूक भी करते हैं।
Posted By: Jagran
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