गृहस्थ जीवन में होती है पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका : रंगनाथाचार्य

रोहतास। गृहस्थ जीवन में पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पति- पत्नी गृहस्थ जीवन के दो पहिया हैं। इनके बिना सफल जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रखंड के बांदू गांव में आयोजित ज्ञानयज्ञ के पांचवें दिन मंगलवार को त्रिदंडी आश्रम डेहरी के पीठाधीश्वर रंगनाथाचार्य जी महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान यह बातें कही।

उन्होंने कहा कि सफल गृहस्थ जीवन तभी संभव है, जब पति-पत्नी दोनों के बीच संस्कारित समन्वय स्थापित हो। उस घर का कल्याण निश्चित होता है। खासकर जब परिवार संयुक्त हो, तो पूरे परिवार को सफलता निश्चित मिलती है। रामायण और श्रीमद्भागवत गीता में भी वर्णन मिलता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम का संयुक्त परिवार होने और एक दूसरे के प्रति समर्पण होने के कारण राज्य में प्रतिष्ठा बनी रही। वहीं पांडवों का भी परिवार संयुक्त था, फलस्वरूप हर संकट को वे लोग मिलकर हल कर लिए। पत्नी के बिना कोई पूजा अर्चना या धार्मिक अनुष्ठान का फल प्राप्त नहीं होता। सामाजिक ²ष्टिकोण से भी देखा जाए, तो जिस घर में पति-पत्नी का संबंध मधुर होता है, उस घर के बच्चे भी संस्कारित होते हैं और एक दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं। जिस घर में नित्य विवाद होते रहता है, उस घर का विकास एवं सुख-शांति भी छिन जाती है और उस घर के बच्चे भी झगड़ालु प्रवृत्ति के हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान ने जगत कल्याण के लिए पुतना ,बकासुर जैसे राक्षसों का वध किया। वहीं कालयवन को मुचकुंद के द्वारा वध कराया। ब्रह्माजी और इंद्र के अहंकार को समाप्त करने के लिए इंद्र का मान मर्दन भी किया तथा जगत कल्याण का उपदेश दिया। इसलिए अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकारी प्रवृत्ति के व्यक्ति से ईश्वर कोसों दूर रहते हैं। जहां घर में मधुर संबंध और एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना होती है। ईश्वर का वास वही होता है। गृहस्थ जीवन को चलाने के लिए बलराम जी का रेवती से विवाह कराया व स्वयं रुक्मिणी से विवाह भगवान श्रीकृष्ण ने किया है। गृहस्थ जीवन में पत्नी के साथ रहकर जीवन व्यतीत करना व माता पिता की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।
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Posted By: Jagran
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