प्यासी धरती की कोख पर संकट

जमुई [आशीष कुमार चिटू]।

जिले की धरती खतरनाक स्तर तक सूख गई है। प्यास के मारे इसकी सेहत तेजी से बिगड़ रही है। संकट अब इसकी कोख पर है। अगर वक्त रहे नहीं संभले तो यहां चकाई और अलीगंज प्रखंड की करीब 20 हजार हेक्टेयर भूमि बंजर हो जाएगी।
कृषि विभाग की मृदा (मिट्टी) जांच प्रयोगशाला की ताजा रिपोर्ट यह कह रही है। अलीगंज व चकाई प्रखंड के लिए रिपोर्ट ने खतरे का अलार्म तक बजा दिया है। इन दोनों प्रखंडों का बड़ा भूभाग सिंचाई की कमी और अधिक समय तक परती होने के कारण तेजी से क्षारीय और अम्लीय हो रहा है। जहां खेती हुई वहां तुर्रा यह भी कि पर्याप्त पटवन कर पाने में अक्षम किसानों ने अधिक पैदावार के लिए बेतहाशा रसायनिक खादों का इस्तेमाल कर दिया। नतीजा मिट्टी को स्वस्थ रखने वाले प्राकृतिक रसायन तय मानक से ऊपर-नीचे हो गए हैं और मिट्टी अब 'दर मन' अनाज पैदा कर नहीं पा रही।
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हाल में ही कृषि विभाग ने जिले के 10 प्रखंडों के 1185.24 हेक्टेयर भूमि में 1221 जगहों से मिट्टी के नमूने का संग्रह किया था। इसकी 12 पैरामीटर पर जांच की गई है।
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अलीगंज में क्षारीय हुए खेत
अलीगंज प्रखंड के ताजपुर गांव में कुल 189.24 हेक्टेयर भूमि से 110 जगहों की मिट्टी की जांच की गई। यहां मिट्टी का पीएच (पावर ऑफ हाइड्रोजन) तय मानक 6.5 से 7.5 से अधिक पाया गया है। किसी-किसी नमूने में पीएच 9.5 तक पाया गया। यहां मिट्टी में जैविक कार्बन भी तय मानक 0.5 से 0.75 प्रतिशत से बहुत कम पाया गया। अलीगंज प्रखंड के 8751.70 हेक्टेयर जमीन की सेहत का रिपोर्ट भी ऐसा ही होने का अनुमान है। कृषि विज्ञानियों के अनुसार मानक से अधिक पीएच होना जमीन के क्षारीय होना दर्शाता है। यही हाल रहा तो जमीन बंजर हो जाएगी।
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चकाई में अम्लीय हो रहे खेत
चकाई प्रखंड के घाघरा गांव के 100 हेक्टेयर रकवा की 211 मिट्टी नमूने की जांच में खेतों का पीएच मानक से कम पाया गया है। कहीं-कहीं यह पांच से भी कम पीएच पाया गया। साथ ही जैविक कार्बन भी बहुत कम पाया गया। प्रखंड में 11303.65 हेक्टेयर जमीन खेती योग्य है। मृदा वैज्ञानिक के अनुसार मिट्टी में मानक से कम पीएच होने पर मिट्टी अम्लीय होने लगती है और जमीन बंजर हो जाता है।
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क्या है पीएच
पीएच (पावर ऑफ हाइड्रोजन) से खेत के गुण का पता चलता है। मृदा विज्ञानी ब्रजेश कुमार ने बताया कि मानक 6.5 से 7.5 तक पीएच का मतलब खेती के लिए उपयुक्त, इससे अधिक का मतलब क्षारीय जमीन और कम का मतलब अम्लीय जमीन होता है।
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क्यों होता है जमीन अम्लीय व क्षारीय
मृदा विज्ञानियों के अनुसार अधिक समय तक जमीन को पर्याप्त पटवन नहीं मिलने और बाजार वाले रसायनिक खादों के बेतहाशा इस्तेमाल, अधिक समय तक कहीं जमीन पर खेती नहीं होने के कारण जमीन अम्लीय और क्षारीय हो जाता है। अलीगंज और चकाई में खेतों को पर्याप्त पानी मिली नहीं और अधिक उपज लेने के लिए किसानों ने खूब खाद का इस्तेमाल किया। दूसरे यहां की पहड़तल्ली की जमीन पर खेती बहुत समय से नहीं की गई है। इस कारण यहां की जमीन की सेहत बिगड़ी है।
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स्वस्थ मिट्टी में रसायन की मात्रा
- पॉवर आफ हाइड्रोजन (6.5 से 7.5 तक) 6.5 से 7.5 तक रहना चाहिए
- जैविक कार्बन मानक 0.5 से 0.75 प्रतिशत तक
- पोटाश प्रति हेक्टेयर 145 से 337 किलोग्राम।
- बॉरोन 0.5 प्रतिशत से ऊपर।
- जिंक 0.78 पीपीएम (पार्टिकल पर मिलियन) से ऊपर।
- जिंक सल्फर 10 पीपीएम से ऊपर रहना चाहिए।
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कहां से मिट्टी के कितने नमूने लिए गए
प्रखंड- गांव - नमूना संख्या
सिकंदरा - धनवे - 128
सदर - मिसिर बीघा - 81
झाझा - कुबड़ी - 72
सोनो - गम्हरिया - 38
लक्ष्मीपुर - नवकाडीह - 77
खैरा - कर्णनवादा - 74
गिद्धौर - गंगरा - 203
बरहट - मलयपुर - 227
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बचाव के तरीके
मृदा विज्ञानी ब्रजेश कुमार के अनुसार पीएच अधिक होने की स्थिति में खेतों में जिप्सम डालकर इसे कम किया जा सकता है। जिप्सम डालने का आदर्श महीना जून व जुलाई है। खेत को समतलीकरण कर उसमें 8-10 क्विटल प्रति एकड़ की दर से जिप्सम फैलाकर खेत को पानी से एक सप्ताह तक डूबाकर रखना है। कम पीएच वाले खेतों में चूना डालने से फायदा मिलता है। चूना किसी मृदा विज्ञानी से परामर्श के अनुरूप ही खेत में डालना है। पीएच के स्तर पर चूना की मात्रा व समय निर्धारित की जाती है। पीएच ठीक होने पर अन्य रसायन यथा जैविक कार्बन, जिंक आदि भी मानक अपने जगह पर आ जाता है।
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मिट्टी हेल्थ कार्ड के माध्यम से किसानों मिट्टी के बारे में जानकारी व सलाह दी जाएगी। अलीगंज एवं चकाई के किसानों को खासकर जागरूक किया जाएगा।
संजय कुमार
डीएओ, जमुई।
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Posted By: Jagran
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