65 घंटे बाद पुलिस ने किया भूल सुधार, धारा बदलने की न्यायालय से लगाई गुहार

-पूरे प्रकरण में पुलिस की खूब हुई फजीहत

-72 घंटे बाद भी आरोपित चिकित्सक की नहीं हो पाई पेशी, तोड़फोड़ मारपीट व आगजनी मामले में भी दर्ज नहीं हुई प्राथमिकी
-आइएमए ने पुलिस पर लगाया पक्षपात का आरोप, डीएम को दिया ज्ञापन
-पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामान्य, बेसरा व ब्लड सैंपल भेजा गया पटना
अरविद कुमार सिंह, जमुई
चिकित्सक के यहां इलाज के दौरान मरीज की मौत और मारपीट व तोड़फोड़ के साथ आगजनी के मामले में जमुई पुलिस खुद अपनी फजीहत करा रखी है। चिकित्सक के विरुद्ध हत्या का मामला दर्ज करने की गलती का एहसास करने में भी पुलिस को 65 घंटे लग गए। पुलिस ने न्यायालय के समक्ष भूल सुधार की अर्जी दी। इस अर्जी में पुलिस ने आरोपित चिकित्सक डॉ. विशाल आनंद पर दफा 304 ए के तहत मामला परिवर्तित करने का अनुरोध किया है। पुलिस की अर्जी पर न्यायालय का फैसला आना बाकी है।
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इधर घटना के चौथे दिन अर्थात 72 घंटे बाद भी आरोपित चिकित्सक की पेशी नहीं हो पाई। न्यायिक अधिकारी मनीष कुमार ने विलंब से पेशी के कारणों से संबंधित रिपोर्ट एसएचओ से तलब किया है। पुलिसिया और न्यायिक कार्रवाई से इतर आईएमए का एक शिष्टमंडल शनिवार को जिलाधिकारी धर्मेंद्र कुमार से मिलकर ज्ञापन दिया। जिसमें पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगाया है। साथ ही यह भी कहा है कि पुलिस ने हत्या का मामला चिकित्सक के खिलाफ आनन-फानन में दर्ज कर लिया लेकिन चिकित्सक के क्लीनिक में तोड़फोड़ मारपीट और आगजनी की घटना का आवेदन देने के 72 घंटे बाद भी मामला दर्ज नहीं किया गया। दिनभर की गहमागहमी के बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामान्य आया है। बेसरा व ब्लड सैंपल जांच के लिए पटना भेजा गया है। फिलहाल पुलिस कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। इस बीच आइएमए भागलपुर ने जमुई एसपी से इस मामले को लेकर सात सवाल पूछे हैं। इसका जवाब फिलहाल अनुत्तरित है।
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आइएमए भागलपुर का एसपी से सात सवाल
-आरोपित चिकित्सक को सुरक्षा के नाम पर तीन दिन तक हिरासत में रखना कहां तक उचित है?
-चिकित्सीय लापरवाही के मामले में मेडिकल बोर्ड की अनुशंसा के बगैर चिकित्सक पर धारा 302, 304 या 304ए के तहत मुकदमा दर्ज करना क्या कानूनी है?
-चिकित्सक के क्लीनिक में हिसक तोड़फोड़ पर अब तक एफआइआर नहीं करना कहां तक न्याय संगत है?
-तीन गंभीर मरीज के क्लीनिक में भर्ती रहते हुए क्लीनिक को सील किया जाना या फिर चिकित्सक को हिरासत में लिया जाना कहां तक न्यायोचित है?
-घायल चिकित्सक की पुलिस हिरासत में इंज्यूरी रिपोर्ट नहीं लेना और ना ही चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराया जाना क्या मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है?
-आइएमए के प्रतिनिधिमंडल को आपके द्वारा डाक्टर को मर्डर केस में फंसा देने और क्लीनिक भी अनिश्चित काल के लिए बंद करा देने की धमकी देना कहां तक जायज है?
-हड़ताल पर जाने की स्थिति में भविष्य में किसी घटना में सहयोग की अपेक्षा ना रखने की नसीहत आपके द्वारा दिया जाना क्या कानून सम्मत है?
Posted By: Jagran
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