चितन कर समस्या का समाधान खोजना भारतीय परंपरा : प्रो. रविशंकर

संवाद सूत्र, नालन्दा : नव नालंदा महाविहार (डीम्ड विश्वविद्यालय) नालंदा में 16 से 19 जनवरी तक आयोजित 14वां नालंदा डायलॉग उपनिषद के मंगल पाठ के साथ सम्पन्न हो गया। इस डायलॉग में दर्शन न्यूरोसाइंस, मनोविज्ञान, भौतिक विज्ञान, औषध विज्ञान, सर्जरी विज्ञान, परामर्श विषयों के ²ष्टिकोण से कुल 9 अकादमिक सत्र तथा 6 पैनल सत्र संपादित हुए। जिसमें 35 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। समापन संबोधन में आईआईटी दिल्ली के प्रो वी रविशंकर ने कहा कि चितन करना और समस्याओं का समाधान निकालना प्रचीन भारतीय परंपरा है। 25 सौ साल पूर्व ही ऋग्वेद के सूक्त में इस ²ष्टि के संबंध में विचार करना प्रारंभ कर दिया गया था। छानदोंग्य उपनिषदों में इसका गहन एवं स्पष्ट विवरण है। इसी संदर्भ में भारत में अनेक संप्रदाय एवं महापुरुष हुए, जिन्होंने पूरे विश्व को दिशा दी। इस क्रम में उन्होंने पाणिनि, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, मिस्त्र, नव्य न्याय प्रणेता गंगेश उपाध्याय के योगदानों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गणित, ज्योतिष और अन्य विज्ञानों में भी आर्यभट्ट, मिहिर भट्ट जैसे महापुरुषों का योगदान रहा है। दर्शन में जो ज्ञान हम पाते हैं, उसे विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रयोग करते हैं, दर्शन बाह्य सिद्धांत और आंतरिक व्यवहार है और विज्ञान व्यवहार है और आंतरिक सिद्धांत। दोनों एक दूसरे का पूरक हैं। भारत मे ज्ञान-विज्ञान में संवाद की पुरानी परंपरा है। यह परंपरा संघर्ष के वितण्डा वाद के लिए नहीं बल्कि विभिन्न ²ष्टि से प्राप्त ज्ञान में समन्वय और विकास के लिए है। दर्शन से कारण व कार्य संबंध को जानकर विज्ञान भी अपने केमिकल तथा मटेरियल का संयोजन व वियोजन करता है। फिर उससे मानव उपयोगी वस्तुओं का विकास करता है। उन्होंने कहा कि नालंदा गौरवशाली पवित्र धरती है, जहां से पूरी दुनिया में शिक्षा का अलख जगाया गया है। नालंदा के आचार्य, विद्यार्थी सभी मेधावी और परिश्रमी हैं। वे आगे भी नालंदा डायलॉग में आने की कामना करते हैं।

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भारत में दर्शन, धर्म व विज्ञान के विचारों में संघर्ष नहीं : कुलपति
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समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे महाविहार के कुलपति प्रो बैद्यनाथ लाभ ने कहा कि भारतीय विचारधारा पूर्ण और संतुलित है। यहां दर्शन, धर्म, आध्यात्म तथा विज्ञान के विचारों में कोई संघर्ष नहीं बल्कि पूर्ण समन्वय है। सबका अपना-अपना अनुभव है, अपना-अपना ²ष्टिकोण है। इसमें कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं बल्कि समन्वयात्मक है। मंजिल सबकी एक है। उन्होंने उपमा के जरिए समझाया कि बच्चा जब गर्भ में आता है, तब दर्शन उसका दार्शनिक कारण खोजता है कि वह गर्भ में क्यों आता है और विज्ञान खोजता है, वह कैसे आता है। इस प्रकार दोनों ²ष्टिकोण बच्चे को समझने का ही है।
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दार्शनिक व वैज्ञानिक संवाद कहीं और नहीं होता: रोधन फ्लैग्नन
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विद्वान अतिथि आयरलैंड से आए रोधन फ्लैग्नन ने कहा कि वे इस डायलॉग में पहली बार आए हैं। इस तरह का संवाद कहीं और नहीं देखने को मिला है। यहां दार्शनिक और वैज्ञानिक एक मंच पर अपने विचार का आदान-प्रदान करते हैं।
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अवसर प्रदान करता है नालंदा डायलॉग : शाहिदुल इस्लाम
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बांग्लादेश से आए शाहिदुल इस्लाम ने कहा कि इस डायलॉग में काफी अनुभूति मिली है, बहुत कुछ जानने व समझने को मिला है। नालंदा डायलॉग एक अवसर प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार का डायलॉग का आयोजन आगे भी होना चाहिए।
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देवप्रिया व पल्लवी के उपनिषद पाठ से हुआ समापन
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देव प्रिया घोष एवं डॉ पल्लवी मुखर्जी ने उपनिषद के श्लोक से विश्व के कल्याण एवं शांति के लिए मंगल पाठ कर समारोह का समापन किया। कार्यक्रम का रिपोर्ट कार्ड लाइब्रेरियन डॉ के के पांडेय ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के संयोजक बुद्धदेव भट्टाचार्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया तथा मंच का संचालन डॉ जाहिरा खातून ने किया। इस अवसर पर प्रो आर्यन प्रसाद, डॉ जाहिरा खातून, डॉ निहारिका लाभ, डीन एकेडमी डॉ श्रीकांत सिंह, डॉ राजेश रंजन, डॉ हरे कृष्ण तिवारी, प्रो आर एन प्रसाद, डॉ ललन झा, डॉ रुबी कुमारी, डॉ सुबोध कुमार के साथ अन्य आचार्य, शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित थे।
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नालंदा वाद की परंपरा को बढ़ाने का वैश्विक मंच है यह डायलॉग : डॉ भट्टाचार्य
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नालंदा डायलॉग के प्रभाव के बारे में इसके संयोजक डॉक्टर बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बताया कि महाविहार के दर्शन विभाग ने नालंदा वाद परंपरा को आगे ले जाने के उद्देश्य ने यह आयोजन किया। इसका विषय दर्शन और आधुनिक विज्ञान के कारण कार्य सिद्धांत था। इसमें विभिन्न क्षेत्र से आए विद्वानों ने निष्कर्षों का आदान-प्रदान किया। इससे विज्ञान और दर्शन में जो पृथकतावाद का अनुभव है, वह कम हुआ है। इसमें वैज्ञानिक और दार्शनिकों ने एक दूसरे में प्रवेश कर समझने और दोनों में अंतर्निहित संबंधों को खोजने का प्रयास किया है। यह इस डायलॉग की विशेषता है। दूसरे इसका प्रभाव यह है कि नालंदा डायलॉग अब केवल राष्ट्रीय न रहकर अंतरराष्ट्रीय हो गया है, इसमें विदेश के विद्वान भी शामिल हो रहे हैं। इस डायलॉग में अमेरिका, आयरलैंड और बांग्लादेश के प्रतिभागी भी शामिल हुए हैं। वहीं डॉक्टर सुबोध कुमार ने बताया कि 4 दिनों का नालंदा डायलॉग शोधार्थी और हमारे जैसे जिज्ञासुओं के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है। दर्शन के साथ-साथ विज्ञान एवं तकनीक के विभिन्न विषयों के ²ष्टिकोण से कारण का सिद्धांत समझने का अवसर मिला है।
Posted By: Jagran
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