धान के कटोरे में चावल पर संकट के बादल



धान के कटोरे के रूप में विख्यात जिले का चावल उद्योग संकट में है। दर्जनों राइस मिल या तो बंद हो चुके हैं या बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। जिसके चलते हजारों मजदूरों के रोजगार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कभी अकेले नोखा में कुल दो दर्जन राइस मिल संचालित होते थे। यहां से ट्रकों पर लादकर चावल बंगला देश तक जाता था। जिससे यहां का चावल मंडी पूरे बिहार में प्रसिद्ध था। लेकिन उद्योग की सुस्ती से चावल मंडी में सन्नाटा पसरा हुआ है। एक एक कर बंद हो गईं राइस मिलें:
कभी रोजगार के स्त्रोत साबित हो रहे जिले की राइस मिलें एक-एक कर बंद हो गईं। धान का कटोरा कहे जाने वाला नोखा क्षेत्र को कभी राइस मिलों की नगरी कहा जाता था । 1948 में अन्नपूर्णा जी राइस मिल की स्थापना की गई थी । उसके बाद लगातार राइस मिलें खुलती गईं । एक समय था, जब प्रखंड में 26 राइस मिलें हुआ करती थीं। लेकिन अब महज तीन राइस मिल ही बची हैं । जो उसिना चावल के बदले अब अरवा चावल बना रही हैं । राइस मिल की बदहाली से किसानों को अपना धान बेचने की समस्या आ खड़ी हुई है। मजदूरों का पलायन भी बढ़ा है । एक राइस मिल में 75 से 80 लोगों को रोजगार मिलता था । किसानों, व्यवसायियों को भी अच्छी आमदनी हो जाती थी । लेकिन राइस मिल बंद होने के कारण रोजगार का संकट खड़ा हो गया है । मिल बंद होने के कारण ट्रांसपोर्टर, होटल व ब्रोकर में लगे लोगों के समक्ष भी बेरोजगारी छा गई है । बंगला देश तक जाता था चावल:

कभी नोखा स्टेशन रोड स्थित चावल मंडी व्यवसायियों की चहल -कदमी से गुलजार हुआ करता था । 80 के दशक में नोखा का चावल बंगला देश, पाकिस्तान, भूटान तक के व्यवसायी नोखा आकर चावल ट्रांसपोर्ट कर ले जाते थे । लेकिन 2010 के बाद मिलों की स्थिति धीरे-धीरे खराब होती चली गई । सरकारी उदासीनता व गलत नीति के कारण नोखा के राइस मिल बंद होते गए । 1990 में यहां 26 राइस मिल थे । 2020 में महज पांच बचे हैं । मिल के बंद होने के कारण सैकड़ों ट्रांसपोर्टर भी बेरोगार हो गए । जिसके चलते नोखा के चावला उद्योग ने अपना पहचान खो दिया है । इस समस्या को लेकर मिलरों का प्रातिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से भी मिला था । लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।
कहते हैं लोग
राइस मिल की स्थिति सरकार की गलत नीति के कारण खस्ता हो गई है । मिल घाटे में चल रहे हैं । सरकार इस पर विचार करे नहीं तो फूड्स उद्योग अपना अंतिम दम तोड़ रहा है ।जिसकी जिम्मेवारी सरकार की है ।
रामाश्रय चौधरी, चावल व्यवसायी
पैक्स की गलत नीति व सरकार के गलत फैसले के चलते राइस मिल आखिरी दम तोड़ रहे हैं । बाजार में चावल लेने के लिए ग्राहक नहीं हैं । किसान की धान खरीद नहीं हो रही है । छोटे मिलर चावल पैक्स को देते हैं । जब कि बड़े मिलर सरकार को कई तरह के टैक्स देते हैं । जिसका नतीजा है कि बड़े मिल बंद हो रहे हैं ।
जितेंद्र सिंह, दुर्गा जी राइस मिल
सरकार राइस मिल को धान क्रय केंद्र में तब्दील कर दे तो राइस मिलरों की स्थिति सुधर सकती है । साथ ही किसान की धान सरकारी दर पर मिलर खरीद सकेंगे । इससे चावल उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार भी बढ़ेगा।
लक्ष्मण प्रसाद, राइस मिलर

आज धान के खरीदार नहीं मिल रहे हैं । किसान बदहाल है । सरकार उदासीन है । किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलना चाहिए । इसके लिए राइस मिलों के संरक्षण की जरूरत है ।
संतोष पाठक, किसान कहते हैं बीडीओ
बंद होती राइस मिल के कारण किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाएगा । अब यहां पर मिलर्स को भी चाहिए कि अपने उत्पादन व ग्रेडिग में सुधार ला कर बाहर के बाजार में उसे बेचें । अब नोखा की मंडी बंद हो गई है । किसानों को कुदरा जाना पड़ रहा है । मिलर्स को बाजार में मांग के अनुरूप ही चावल का उत्पादन करना होगा ।
रामजी पासवान
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

अन्य समाचार