मंत्र, संत व भगवान की नहीं लेनी चाहिए परीक्षा: जीयर स्वामी



मंत्र, संत व भगवान की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। इसी मर्यादा का पालन कुंती ने नहीं की थी, जिसके चलते उनको विवाह से पहले पुत्र को प्राप्त करना पड़ा था। कुंती ने मर्यादा का पालन नहीं किया और मंत्र की परीक्षा लेनी शुरू कर दी। जिसका परिणाम यह हुआ की कुंवारी अवस्था में ही उसे कर्ण के रूप में पुत्र को प्राप्त करना पड़ा। अत: किसी भी व्यक्ति को मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। प्रखंड के परछा गांव में आयोजित ज्ञान महायज्ञ में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि विषम परिस्थिति में भी मर्यादा का पालन करते रहना चाहिए, क्योंकि मर्यादा ही पुरुष की शोभा है। जिस प्रकार जल विहीन नदी का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता, उसी प्रकार मर्यादा के बिना मनुष्य का भी कोई अस्तित्व नहीं है। जो बुजुर्गों का सम्मान करते हैं, उन पर लक्ष्मी नारायण भगवान की कृपा बनी रहती है। सबको आपस में प्रेम और सदभाव के साथ जीवन जीना चाहिए। भरत के चरित्र को जीवन में उतारना चाहिए। जिस प्रकार त्रेता व द्वापर युग में एक भाई दूसरे भाई के लिए त्याग की भावना रखते थे, उसको जीवन में उतारना चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि एक भाई से बेईमानी कर धन उपार्जन कर कबूतर को दाना खिलाने से कोई फायदा नहीं हो सकता। जब मन मैला हो तो धर्म कर्म को ईश्वर ग्रहण नहीं कर सकते। ईश्वर पवित्र और सर्वहित करने वाले जीव पर प्रसन्न होते हैं। मौके पर विधि व्यवस्था में राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष रमेश चंद्र चौबे, पं. सुरेश शास्त्री, नितेश पांडेय, प्रमोद दुबे, मुन्ना दुबे, मुनि महतो, हीरानंद चौबे, गुड्डु दुबे, चांद चौबे, मिथलेश चौबे, सुनील चौबे, संतोष पांडेय, कमलेश मेहता, जयनंद महतो समेत अन्य शामिल थे।
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Posted By: Jagran
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