मानव तन परमात्मा की श्रेष्ठ कृति : स्वामी राजनाथ

किशनगंज। पौआखाली बाजार में एक दिवसीय संतमत-सत्संग का आयोजन बुधवार को किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने परमार्थिक ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाई। स्तुति-विनती व भजन से सत्संग के कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया।

सत्संग में प्रवचन करते हुए मुख्य प्रवचन कत्र्ता महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के शिष्य स्वामी राजनाथ ने कहा कि मनुष्य को स्वतंत्र भक्ति करनी चाहिए। जो केवल आत्मा से किया जाता है। इंद्रियों से किये जाने वाले भक्ति को परतंत्र भक्ति कहते हैं। उन्होंने ईश्वर से प्रेम को ही भक्ति का प्रथम मार्ग बताया। साथ ही कहा कि प्रेममय भक्ति से भगवान रीझ जाते हैं। मानव तन को परमात्मा की श्रेष्ठ कृति बताते हुए उन्होंने इसे मुक्ति का साधन धाम बताया। उन्होंने कहा कि शरीर की अवस्थाएं दिन ब दिन बदलती जा रही है। इसलिए शरीर और संसार का मोह छोड़कर परमात्मा की शरण में जाना चाहिए। भौतिक साधन शरीर के साथ नही जाता, इस शरीर के साथ केवल परमार्थिक धन ही जाता है। सुधि जनों को अन्तरमार्गी बनकर साधन करते हुए उसे प्राप्त करना चाहिए। आयोजन को सफल बनाने में रामेश्वर शर्मा, नीरस शर्मा, श्याम किशोर सिंह, लोकनाथ दास, रणवीर सिन्हा, दुर्गा दास, दौड़ नारायण सिन्हा आदि लगे रहे।
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Posted By: Jagran
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