सीपेज का पानी बढ़ा रहा परेशानी, नहीं हो रहा निदान का प्रयास



संवाद सूत्र, सरायगढ़ (सुपौल) : सीपेज कोसी इलाके के लिए तटबंध निर्माण के साथ ही गंभीर समस्या के रूप में खड़ी है। कोसी बराज से जिले के सीमाक्षेत्र में लगभग 80 किमी की लंबाई में बांध से सटे सीपेज का एरिया है, जहां सालभर जलजमाव रहता है। इसमें किसानों की निजी जमीन भी बड़े पैमाने पर प्रभावित होती है। जबकि यह इलाका माछ और मखान के लिए जाना जाता है। सरकार के कई मंत्रियों ने समय-समय पर इन संभावनाओं को भुनाने के लिए प्रयास किए जाने और इस बहाने क्षेत्र की आर्थिक संपन्नता के सब्जबाग दिखाया लेकिन आज तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। पूर्वी तटबंध से सटे दो दर्जन से अधिक गांवों में सीपेज के पानी के कारण हजारों एकड़ खेतों में खेती नहीं हो रही है। कोसी पूर्वी तटबंध के गोपालपुर, छिटही-हनुमानग, वैशा, कल्याणपुर, सदानंदपुर, पिपराखुर्द, पुरानी भपटियाही, गढि़या, सरायगढ़, खाप, चिकनी, चांदपीपर, कुल्लीपट्टी, जरौली, कुशहा, बैजनाथपुर, अंदौली सहित कई गांवों में पूरे साल अधिकांश समय सीपेज के पानी से उपजाऊ खेतों में किसान फसल बर्बाद होने के डर से खेती नहीं करते हैं।

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चार से पांच फीट बहता है पानी
कोसी नदी में पानी बढ़ने के साथ ही सीपेज का पानी बढ़ने लगता है। बरसात के दिनों में तो सीपेज का पानी इतना भर जाता है कि लोग खेतों में भी नहीं जा पाते हैं। सीपेज का पानी चार से पांच फीट की उंचाई में बहता है।
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जोतदार बने गरीब
सीपेज के पानी के कारण कई अमीर किसान गरीब बने हैं। इन लोगों को अनाज के लिए भटकना पड़ता है। लोग चाह कर भी ऐसे खेतों में फसल नहीं लगा पाते हैं। लगाते भी हैं तो वह सीपेज के पानी में डूब जाता है।
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कोढ़ली गांव के पास से निकलता है सीपेज का पानी
सीपेज का पानी कोसी तटबंध के कोढ़ली गांव के समीप से निकलता है। यही पानी कोढ़ली से सुपौल तक फैलता है। सीपेज का पानी लोगों के घरों में भरा रहता है। कई गांव के लोगों को पूरे बरसात आवागमन की समस्याएं भी बढ़ जाती है। सीपेज के पानी के कारण सब्जी की खेती भी प्रभावित होती है। मवेशी के चारे की भी समस्या बढ़ जाती है।
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एक चैनल की खुदाई से घट जाएगी परेशानी
इलाके के लोगों का कहना है कि सदानदंपुर गांव समीप से घाघर नदी तक एक चैनल की खुदाई कर देने से यह परेशानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। सीपेज का सारा पानी चैनल के द्वारा घाघर नदी में गिर जाएगा। फिर प्रभावित गांव की जमीन उपजाऊ हो जाएगी। इससे क्षेत्र में खुशहाली लौट जाएगी।
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बनते-बनते रुक गया डीपीआर
चैनल खुदाई के लिए पांच साल पहले डीपीआर बनाने की चर्चा हुई। डीपीआर बनते-बनते रुक गया। तब से अब तक इसके लिए कोई प्रयास ही नहीं हुआ है। जबकि लोगों द्वारा इस मुद्दे को बार-बार उठाया जाता रहा है।
Posted By: Jagran
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