निदर्शन कभी शत प्रतिशत परिशुद्ध नहीं हो सकता : प्रो. विजय

दरभंगा : लनामिवि के स्नातकोत्तर समाजशास्त्र विभाग के तत्वावधान में भारतीय सामाजिक विज्ञान शोध परिषद (आईसीएसएसआर) संपोषित दस दिवसीय कार्यशाला के पांचवें दिन रविवार को पटना विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार लाल ने व्याख्यान दिया। प्रो. लाल ने कहा कि आत्मा और शरीर एक दूसरे से जुड़े हैं। आत्मा के बिना शरीर कुछ नहीं है। उसी प्रकार निदर्शन आत्मा की तरह है, जिससे शोध जुड़ा हुआ है। निदर्शन समग्र संपूर्ण जनसंख्या में से चुने गए एक ऐसे अंश से है, जिसमें समग्र का प्रतिनिधित्व करने के समस्त गुण विद्यमान हों। कहा कि किसी जनसंख्या में किसी चर का विशिष्ट मान ज्ञात करने के लिए उसकी इकाइयों को निदर्श कहते हैं और चुनी हुई इकाई के समूह को निदर्शन कहते हैं। कहा कि निदर्शन में यह अत्यंत आवश्यक है कि समस्त जनसंख्या में अधिक से अधिक समानता और चुनी इकाईयां समग्र का ईमानदारी से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हो। निदर्शन कभी शत-प्रतिशत परिशुद्ध नहीं हो सकता। फिर भी शोधकर्ता को सदैव प्रयास करना चाहिए कि निदर्शन यथासंभव प्रतिनिधित्वपूर्ण हो। प्रो. लाल ने श्रेष्ठ निदर्शन के विशेषता का वर्णन करते हुए कहा कि निदर्शन में उपयुक्त आकार, पूर्वाग्रह रहित विश्वसनीयता, अनुभवों पर आधारित ज्ञान एवं तर्क पर आधारित साधन एवं उद्देश्यों के अनुरूप हो। निर्देशन के प्रकार में प्रायिकता के दर्शन एवं निदर्शन की व्याख्या की। कुलसचिव कर्नल एनके राय प्रतिभागियों से अंत:क्रियात्मक चर्चा की और कार्यशाला की उपयोगिता उपादेयता दोनों पर उन्होंने शोध छात्रों को बताया। राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. जितेंद्र नारायण ने उपकल्पना एवं इसके परीक्षण की व्याख्या की। सत्र के अंत में अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कोर्स कोऑर्डिनेटर सह विभागाध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि इस कार्यशाला के आयोजन होने से छात्रों को नए अंतर्दृष्टि प्राप्त हो रहे हैं। तीनों सत्र की रिपोर्ट एमआरएम कॉलेज की प्राध्यापक नीलम सेन ने प्रस्तुत की। प्रो. गोपी रमण प्रसाद सिंह, डॉ. मंजू झा, प्रो. ध्रुव कुमार, डॉ. सारिका पांडे, प्राणतारति भंजन, डॉ. शंकर कुमार लाल, लक्ष्मी कुमारी, संजीव कुमार आदि उपस्थित थे।

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Posted By: Jagran
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