कोरोना वायरस: आखिर इस बीमारी से मरने की कितनी संभावना होती है?

ब्रितानी सरकार के वैज्ञानिक सलाहकारों का मानना है कि कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मरने की आशंका केवल 0.5 फीसदी से 1 फीसदी के ही बीच है। कोरोना संक्रमण के मामलों में ये मृत्यु दर कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में इस वायरस के कारण मरने वालों की दर 4 फीसदी है। मार्च की 23 तारीख तक ब्रिटेन में ये दर 5 फीसदी तक थी क्योंकि यहां संक्रमण के सभी मामलों की पुष्टि नहीं हुई थी। कोरोना वायरस संक्रमण की सूरत में किसका टेस्ट होना है और किसका नहीं, इसे लेकर सभी देशों के अपने अलग-अलग मानदंड है। इस कारण अलग-अलग देशों में कोरोना संक्रमण के मामले और इससे होने वाली मौतों के आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं। साथ ही मृत्यु की दर व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाओं तक उसकी पहुंच पर भी निर्भर करती है।

कोरोना से मेरी जान को कितना खतरा है ? जानकारों का कहना है कि कोरोना संक्रमण से उन लोगों की जान खतरा हो सकता है जो बूढ़े हैं और जिन्हें पहले से ही दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं हैं। लंदन के इंपीरियल कॉलेज के ताजा आकलन के अनुसार 80 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए औसत मृत्यु दर से लगभग 10 गुना अधिक है जबकि 40 से कम उम्र वालों के लिए ये कम है। ब्रिटेन सरकार के मुख्य चिकित्सा सलाहकार, प्रोफेसर क्रिस व्हिट्टी कहते हैं कि भले ही बूढ़ों के लिए ये दर अधिक हैं, "लेकिन अधिकतर बूढ़ों में ये मामूली या मध्यम लक्षणों वाली की बीमारी का कारण बनता है।"
वो चेतावनी देते हैं कि हमें ये नहीं मानना चाहिए कि इसके संक्रमण से युवाओं को कम खतरा है। कई युवा भी इस वायरस के कारण आईसीयू में पहुंच चुके हैं। वो कहते हैं कि कोरोना से खतरे को इसे सीधे तौर पर उम्र के साथ जोड़ कर देखना सही नहीं है। पहली बार चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण के 44 हजार मामलों का विश्लेषण किया गया जिसमें पाया गया कि जिन लोगों को पहले से ही मधुमेह यानी डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, दिल या सांस की बीमारी थी, उनमें मृत्यु की दर कम से कम पांच गुना अधिक थी।
ये सभी कारक एक साथ इंसान के शरीर में काम करते हैं। अब तक हमारे पास ये जानकारी नहीं है कि दुनिया अलग-अलग कोने में अलग-अलग प्रकार के लोगों में इस वायरस के कारण किस तरह का खतरा है। फिलहाल कोरोना संक्रमितों में मृत्यु दर को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि किन लोगों को इससे अधिक खतरा है, लेकिन इससे किसी खास प्रकार के लोगों को कितना और किस तरह का खतरा है ये नहीं कहा जा सकता।
संक्रमण के मामलों में मृत्यु दर कुल औसत मृत्यु दर नहीं है। वायरस संक्रमण के अधिकतर मामलों में व्यक्ति में मामूली लक्षण देखने को मिलते हैं और इस कारण वो डॉक्टरों के पास पहुंचते ही नहीं। ऐसे में स्पष्ट कहा जा सकता है कि संक्रमण के अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं हो पाते। इसी साल मार्च 17 को ब्रिटेन के लिए मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वॉलेंस ने अनुमान लगाया कि देश में कोरोना संक्रमण के करीब 55 हजार मामले हो सकते हैं, हालांकि अब तक यहां केवल 2,000 मामलों की ही पुष्टि हुई है। कोरोना के कारण हुई मौतों को अगर 2,000 से आप विभाजित करें तो आपको जो मृत्यु दर मिलेगी को उससे कहीं अधिक होगी जब आप मौतों को 55 हजार से विभाजित करेंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ब्रिटेन में अब तक कोरोना संक्रमण के 6,600 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और यहां इस कारण अब तक 335 मौतें हुई हैं।
कोरोना के पुष्टि हुए मामलों में मृत्यु दर सही मायनों में हो रही मृत्यु दर नहीं हो सकती। इसका एक बड़ा कारण ये है कि अधिकतर मामले दर्ज होते ही नहीं है और इस कारण वो मामले कितने गंभीर हैं ये भी पता नहीं चल पाता। लेकिन ये गलत भी हो सकता है, क्योंकि जो फिलहाल कोरोना से संक्रमित हैं और जिनकी जान को खतरा है उनको ध्यान में न रखकर मृत्यु दर आंकने से ये कम आ सकता है।
अलग-अलग देशों में क्यों है अलग-अलग मृत्यु दर? इंपीरियल कॉलेज द्वारा किए एक शोध के अनुसार, संक्रमण के मामूली से मामूली लक्षणों को पहचानने में अलग-अलग देशों की अलग-अलग काबिलियत हो सकती है। वायरस के टेस्ट के लिए अलग-अलग देश अलग-अलग तरीके इस्तेमाल में लाते हैं। टेस्ट करने की उनकी क्षमता भी अलग होती है और टेस्टिंग के उनके मानदंड भी। ये सभी बातें वक्त के साथ बदलती भी रहती हैं। शुरू के दिनों में ब्रिटेन सरकार प्रतिदिन 10,000 टेस्ट कर रही थी। आने वाले चार सप्ताह में सरकार इसे बढ़ा कर रोजाना 25,000 टेस्ट करने की योजना बना रही है। मौजूदा वक्त में मुख्य रूप में यहां अस्पतालों में ही लोगों के टेस्ट हो रहे हैं।
जर्मनी के पास एक दिन में करीब 20,000 लोगों के टेस्टिंग की क्षमता है और जिन लोगों में संक्रमण के मामूली लक्षण दिखते हैं वो उनका भी टेस्ट करता है। इस कारण वहां अब तक जितने मामले दर्ज किए गए हैं उनमें गंभीर मामले और मामूली संक्रमण के मामलों के आंकड़ों को स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है। जर्मनी में कोरोना की पुष्टि हुए मामलों में मृत्यु की दर करीब 0.5 फीसदी है और ये पूरे यूरोप में सबसे कम है। लेकिन जैसे-जैसे नए संक्रमण के गंभीर मामले आएंगे ये आंकड़ा बदल जाएगा।
आपके रोग की पहचान और उसका इलाज इस बात पर भी निर्भर करता है कि किस तरह का इलाज उपलब्ध है और क्या स्वास्थ्य सेवा वो इलाज करने में सक्षम है। और ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप महामारी के किस स्टेज पर हैं। अगर किसी देश की स्वास्थ्य सेवा के पास अचानक क्षमता से अधिक संख्या में ऐसे मरीज आ जाते हैं जिन्हें आईसीयू में रखे जाने की जरूरत है, और वहां मृत्यु दर का बढ़ना लाजमी है।
मृत्यु दर का सही आकलन कैसे होता है? वैज्ञानिक मौजूद सभी साक्ष्यों को एक साथ रख कर देखते हैं और मृत्यु दर के बारे में एक तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के तौर पर, मामूली लक्षण वाले मामलों के अनुपात का आकलन करने के लिए वो छोटे समूहों पर नजर रखते हैं, उनसे संबंधित सभी तथ्य जुटाते हैं, जैसे एक विमान में सवार सभी लोगों का समूह। लेकिन इस तरह के आकलन में छोटा सा सबूत भी पूरी तस्वीर बदल सकता है। और ये भी हो सकता है कि वो सबूत भी वक्त के साथ बदल जाए। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंज्लिया में मेडिसिन के प्रोफेसर पॉल हंटर बताते हैं कि मौत की दर नीचे भी जा सकती है और ऊपर भी। वो कहते हैं, "ईबोला के मामले में लोग इस बीमारी से निपटने के तरीके सीख गए और मृत्यु दर नीचे आ गई। लेकिन ये बढ़ भी सकती है। अगर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ही खत्म हो गई तो हम मृत्यु दर में उछाल देख सकते हैं।" इसीलिए वैज्ञानिक मृत्यु दर को लेकर एक निचली और ऊंची दर बताते हैं और साथ ही एक आकलन भी बताते हैं जो उस वक्त का बेहतर आकलन होता है।

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