कोरोना वायरस को लेकर लोगों के मन में रोज उठ रहे हैं नए-नए सवाल

कोरोना वायरस ने पूरी संसार को अपनी चपेट में ले लिया है. हिंदुस्तान में भी इसके मुद्दे बढ़ रहे हैं. लोगों के मन में रोज नए-नए सवाल उठ रहे हैं. सोशल मीडिया पर अफवाहें व भ्रांतियां भी प्रकाशित हो रही हैं, जिन्हें दूर करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने कोशिश तेज किया है. डब्ल्यूएचओ व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी जा रहीं कोरोना से जुड़ी जानकारियों को आपक तक पहुंचाने के लिए 'हिन्दुस्तान' ने प्रश्नोत्तरी की आरंभ की है. साथ ही हमारा कोशिश होगा, आपके हर सवाल का विशेषज्ञों से जवाब हासिल कर आप तक पहुंचाना.

कोरोना वायरस के मरीजों में अच्छा हो जाने के बाद संक्रमण के दोबारा होने की कितनी संभावना है? अभी तक इस बात संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया है कि एक बार कोरोना से संक्रमित होने वाले आदमी को यह दोबारा होने कि सम्भावना है या नहीं. कुछ वैज्ञानिकोंका बोलना है कि एक बार संक्रमण हो जाने के बाद इनसानी शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है. मगर चाइना में कुछ मुद्दे ऐसे सामने आए हैं, जिनमें अस्पताल से छुट्टी मिलने के कुछ हफ्ते बाद लोगों को दोबारा संक्रमण हो गया. चाइना के एक अध्ययन के मुताबिक, अभी तक बंदर की एक खास प्रजाति ही इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में पास हुई है.
क्या कैंसर से जूझ रहे या अच्छा हो चुके मरीजों में कोरोना संक्रमण का अधिक खतरा है? वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट तपस्विनी प्रधान के अनुसार, अभी तक की जानकारी के मुताबिक, सामान्य वायरस की तुलना में कोरोना का खतरा 10 गुणा ज्यादा है. हालांकि 80 प्रतिशत कैंसर मरीजों में इसका प्रभाव बहुत कम है. साथ ही जान का खतरा भी कम है, पर 80 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगों में यह 18 प्रतिशत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. डायबिटीज-2, दिल रोग, अस्थमा व इम्युनोसप्रेसिव थेरेपी वाले लोगों को खास ध्यान रखने की आवश्यकता है. 'लेंसेट ऑन्कोलॉजी' में छपे विश्लेषण के अनुसार, कैंसर के मरीजों में इसके गंभीर प्रभाव का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में पांच गुणा अधिक है. रोग या थेरेपी के दुष्प्रभावों के कारण मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता निर्बल हो जाती है, जिससे उनमें संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है. कैंसर से उबर चुके मरीजों के मामलों में में इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है. वायरस की प्रकृति व संरचना के आधार पर इससे निपटने के ढंग वैसे अपनाए जा रहे हैं. इन्फ्लूएंजा से ज्यादा संक्रामक होने के कारण लगातार सामाजिक दूरी बनाए रखने व साफ-सफाई की अच्छी आदतें अपनाना महत्वपूर्ण है. चूंकि यह वायरस नया है व वैसे इसका टीका या एंटी वायरल एंटीडोट नहीं है, इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है कि अपनी इम्युनिटी को मजबूत बनाएं. अपने खान-पान का खास ध्यान रखें. कैंसर से जूझ रहे या अच्छा हो चुके मरीजों को इससे उबरने में कठिनाई हो सकती है. बेहतर है कि वे खुद को बचाएं. अगर संक्रमित हैं या संभावना है तो अलग रहें. मास्क पहनें. उनकी जो लोग देखभाल कर रहे हैं, वे भी मास्क पहनें. वैसे कीमोथेरेपी को रोके जाने या उसमें परिवर्तन करने की आवश्यकता से जुड़े तथ्य नहीं हैं. इसी तरह प्रोफाइलेक्टिक एंटी-वायरल थेरेपी की भी कोई किरदार नहीं है. क्लोरोक्विन, लोपिनविर का भी प्रोफाइलेक्टिक में प्रभाव साबित नहीं हुआ है.
इम्युनिटी बढ़ाने में विटामिन-सी की क्या किरदार है? बाहरी व भीतरी रोगों से बचाने में शरीर के प्रतिरोध प्रणाली की बड़ी किरदार होती है. खान-पान ठीक रखकर हम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत कर सकते हैं. डाक्टर तपस्विनी प्रधान के अनुसार, विटामिन-सी जुकाम से बचाने में मदद करता है, स्कीन को स्वस्थ रखता है, जो बाहरी हानिकारक तत्वों व विषाणुओं के लिए प्रतिरोधक का कार्य करती है. कुछ अध्ययन कहते हैं कि विटामिन-सी, सफेद रक्त कोशिकाओं को भी संक्रमण से लड़ने में मदद करता है. इसके एंटी बैक्टीरियल गुण संक्रमण के प्रभाव को कम करने में खासे प्रभावकारी होते हैं. विटामिन-सी शरीर को कुदरती एंटीऑक्सीडेंट बनाने में भी मदद करता है. नियमित कम से 200 एमजी विटामिन-सी लेना सांस संबंधी संक्रमण की संभावना को कम कर सकता है. अधिकतम सीमा 2000 एमजी रखी गई है. इससे ज्यादा की मात्रा से डायरिया व पथरी होने की संभावना हो सकती है. पुरुषों को 90 एमसीजी व स्त्रियों को 75 एमसीजी विटामिन-सी लेना चाहिए. आंवला; खट्टे फलों जैसे नीबू, संतरा, मौसंबी, टमाटर, किवी; हरी और लाल मिर्च व हरी पत्तेदार सब्जियों में विटामिन-सी भरपूर होता है.
मुझे मछली-मीट खाने का बहुत शौक है. क्या मुझे इन दिनों परहेज करना होगा या इन्हें खाने में कोई परेशानी नहीं है? इन दिनों कोरोना से बचाव के हरसंभव कोशिश किए जा रहे हैं. बोला जा रहा है कि नॉन-वेज खाने वालों को कोरोना की दहशत से उबरने तक मीट नहीं खानी चाहिए. ट्विटर पर भी 'स्टॉप ईिंटग मीट' व 'नो मीट नो कोरोनो वायरस' जैसे रुझान देखे गए हैं. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डाक्टर अनंत मोहन का बोलना है कि यह अफ़वाह इसलिए फैली है क्योंकि वुहान में कोरोना वायरस से संक्रमित ज्यादातर लोगों का समुद्री खाद्य बाजारों के साथ कुछ सम्पर्क बताया जा रहा है. जहां तक मांस या आहार से कोरोना के संबंध की बात है, इसका कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है. लेकिन एहतियात के तौर पर, खास कर हिंदुस्तान में कच्चे मांस से बचने के लिए भी यह एक अच्छा विचार है. आमतौर पकाया हुआ मांस खाना बेहतर होता है. अब तक ऐसी कोई सलाह नहीं दी गई है कि मांस खाने से परहेज किया जाए, लेकिन यह अच्छी तरह पका हुआ होना चाहिए.

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