कोरोना की बंदी से ज़रूरी सेवाएं भी ठप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अचानक लॉकडाउन का एलान करने से देश भर के लाखों सब्ज़ी, फल और दूसरे ज़रूरी सामान बेचने वालों और डिलीवरी सर्विस देने वालों का कारोबार गड़बड़ा गया है. होम डिलिवरी करने वालों को जगह-जगह पुलिस की पिटाई का भी सामना करना पड़ा है.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए 21 दिनों की बंदी की घोषणा की थी.
अचानक हुए इस फ़ैसले के लिए ज़रूरी डिलिवरी करने वाली कई डिलिवरी सेवाएं और वेंडरों की कोई तैयारी नहीं थी. इसके चलते कन्फ्यूजन फैल गया और कई जगहों पर पुलिस और इनके स्टाफ़ के बीच झड़प भी हुई.
सुरेश शाह और उनके भाई राम प्रसाद दिल्ली से सटे नोएडा में पिछले 15 साल से सब्ज़ियां बेच रहे हैं.
इनके रोज़ाना के रुटीन में सुबह थोक मंडी से सब्ज़ियां ख़रीदना और फिर शाम को इसे छोटी ठेलियों के में भरकर बेचने निकल जाना शामिल है.
देश भर के लाखों सब्ज़ी बेचने वालों के लिए रोज़ाना का यही शेड्यूल रहता है. लेकिन, मंगलवार को इन भाइयों का रूटीन बुरी तरह टूट गया.
धंधा पूरी तरह से बैठ गया
ये भाई सुबह छह बजे निकले. सब्जियां लीं और एक घंटे बाद घर पहुंच गए. शाम को उन्होंने ठेले में सामान भरा और निकल पड़े. लेकिन, तकरीबन तभी पुलिस ने उनका ठेला रोका और गालियां देना शुरू कर दिया.
सुरेश ने समझाने की कोशिश की, लेकिन जब तक वह कुछ बोल पाते, पुलिसवाले ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया. सुरेश को मजबूरी में अपना ठेला लेकर घर लौटना पड़ा.
सब्ज़ी नहीं बेच पाने की वजह से उन्हें करीब 3,000 रुपए का नुक़सान हुआ.
उन्होंने कहा, "मुझे इतनी बुरी तरह से मारा गया कि मुझे बैठने में दिक्क़त हो रही है. लेकिन, इससे भी ज़्यादा दर्द मुझे अपने धंधे को हुए नुक़सान का है. मुझे हर दिन महज 300 रुपए का मुनाफ़ा होता है."
उनकी तरह के दूसरे सब्ज़ी वालों को पहले से ही पुलिस की प्रताड़ना का शिकार होने की आदत है.
उन्होंने कहा, "लेकिन, इस बार उन्होंने हमें तब पीटा है जबकि हम वास्तव में मदद करने की कोशिश कर रहे थे. मुझे कोरोना के जोखिम के बारे में पता है और मुझे यह भी पता है कि इस वक़्त मेरी भूमिका पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा बढ़ गई है."
हम दुश्मन नहीं हैं
लॉकडाउन के लागू होने के बाद के दिनों में इसी तरह के वाक़ये कई राज्यों में सामने आए. दिल्ली पुलिस को एक सब्ज़ी वाले को पीटने की वजह से अपने एक अधिकारी को सस्पेंड तक करना पड़ा है.
वेंडरों को कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया रेजीडेंट वेल्फेयर एसोसिएशन और हाउसिंग सोसाइटीज का रखरखाव करने वालों की ओर से भी मिल रही है.
एक आरडब्ल्यूए की ओर से राजेश कुमार को कहा गया कि वे कॉलोनी में फल नहीं बेच सकते. राजेश कुमार बताते हैं, ''कुछ लोगों ने मुझे कहा कि मैं थोक सब्ज़ी मंडी जाता हूं और वहां से संक्रमण को अपने साथ ला सकता हूं. लेकिन, यही लोग अपने घरों पर डिलीवरी भी चाहते हैं. हमारे साथ इस तरह का बर्ताव क्यों किया जा रहा है. हम लोगों को उनके घर में ही रहने में मदद कर रहे हैं. हम यहां दुश्मन नहीं हैं.''
लॉकडाउन ने सप्लाई चेन का लिंक तोड़ दिया
राजेश और शाह भाइयों जैसे वेंडर ज़रूरी सामानों की सप्लाई चेन की रीढ़ हैं.
ये वेंडर सब्जियां, फल, अनाज, ब्रेड और दूध जैसे ज़रूरी सामानों को लाखों-करोड़ों घरों तक हर दिन पहुंचाते हैं.
21 दिन के लॉकडाउन की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि देश के घर-घर तक सामान पहुंचाने वाले इन वेंडरों का नेटवर्क काम करता रहे.
कई राज्य सरकारों ने वेंडरों को पास देने का ऐलान किया है और साथ ही पुलिस को भी चेतावनी दी है कि वे उनके धंधे में मुश्किलें न डालें.
उत्तर प्रदेश के डीजीपी एच सी अवस्थी ने बीबीसी को बताया कि यह एक असाधारण चुनौती है.
उन्होंने कहा, "पहले दो दिनों में कुछ छिटपुट घटनाएं हुईं थीं. हमने बड़े स्तर पर शटडाउन को शांतिपूर्वक लागू किया. पुलिसवालों को कहा गया है कि वे शांत रहें और धैर्य के साथ लोगों से पेश आएं. मौजूदा परिस्थितियां सबके लिए नई हैं."
वो कहते हैं कि उनकी फोर्स की पहली प्राथमिकता ज़िला प्रशासन के साथ मिलकर काम करना है ताकि लोगों को आवश्यक सामान मिलते रहें.
होम डिलिवरी सेवा भी थमी
मुश्किलें केवल वेंडरों के साथ ही नहीं हैं. ऐप-बेस्ड डिलिवरी सेवाएं भी बहुत लोगों को आवश्यक सामान मुहैया कराती हैं.
हालांकि, लॉकडाउन के चलते शुरुआती तीन दिनों में इन कंपनियों को भी चोट पहुंची है. इनके डिलिवरी एग्जिक्यूटिव्स को पूरे देश में पिटाई का सामना करना पड़ा है. कइयों को काम सस्पेंड करना पड़ा है.
डेयरी से लेकर दूसरे उत्पादों की डिलिवरी करने वाले डिलीवरी ऐप मिल्क बास्केट ने कहा है कि उसे सोमवार को उसे 15,000 लीटर दूध और 10,000 किलो सब्जियों को फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ा. सोमवार को कंपनी के स्टाफ, वेंडरों और वाहनों को स्थानीय पुलिस ने काम नहीं करने दिया.
एक मिल्क डिलीवरी ऐप में काम करने वाले प्रदीप कुमार मित्तल ने कहा कि उन्हें पुलिस कई बार रोक चुकी है. वो बताते हैं, ''मुझे कई बार रोका गया और मैंने अनुरोध किया कि मुझे जाने दिया जाए. मुझे बुरा लगा. लेकिन, अब मुझे पास मिल गया है और अब चीजें कहीं आसान हो गई हैं.'
लेकिन, हर वेंडर को पास नहीं मिल पाया है. देश की ब्यूरोक्रेसी पर अब प्रेशर बढ़ रहा है कि वे दरवाज़े पर ही डिलीवरी को सुनिश्चित करें.
जब मंगलवार को पीएम मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान किया तो लोग दुकानों के बाहर जमा हो गए और उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह नहीं की.
बिग बास्केट और मेडिकल इक्विपमेंट फर्म पोर्टी के को-प्रमोटर के गणेश ने कहा कि लॉकडाउन एक सही फैसला था क्योंकि इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प मौजूद नहीं था.
उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, ''किसी सर्विस की ज़रूरत को कोई पुलिसवाला कैसे समझ सकता है? आदत के मुताबिक, वह पास या परमिट देखने का आदी होता है और अगर यह चीज़ नहीं होती तो वह आपको ग़लत शख्स समझता है और पीट भी देता है.'
पोर्टी के दो एग्जिक्यूटिव्स जो कि मेडिकल इक्विपमेंट ले जा रहे थे उनकी केरल और उत्तर प्रदेश में पुलिस ने पिटाई कर दी.
एक अन्य एग्जिक्यूटिव को कर्फ्यू तोड़ने की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया. वे अब ज़मानत पर हैं.
अधिकारियों का कहना है कि ज़रूरी सामानों की डिलीवरी कर रहे लोगों को रोका नहीं जाएगा, लेकिन अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं.
सुरेश कहते हैं, "जो आपके खाने-पीने की ज़रूरतें पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं आप उन्हें पीटते नहीं हैं."
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source: bbc.com/hindi

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