शहरनामा:::: सुपौल :::

बाबा ने साधी चुप्पी

बाबा को नियम-कायदे में रहना पसंद है, पर वे जरूरत पर बोलने वाले लोग हैं। अभी कोरोना के इस संक्रमण काल में उन्होंने बिलकुल चुप्पी साध ली है। बाबा का मानना है कि कानून अपना काम कर रहा है। मानें भी क्यों नहीं, बाबा को तो सरकार चलाने का अपना अनुभव है। खुद को उस भाव में रखते हैं। हमेशा उसी अंदाज में जीते हैं। तभी तो आपदा के वक्त भले ही बाबा कुछ बोलें न बोलें, लेकिन पूरी तरह से वाचफुल हैं। सरकार के आदेश-निर्देश से लेकर समाचारों तक पर पूरी नजर है उनकी। याद कीजिए, कुसहा त्रासदी के दौरान बाबा सेटेलाइट पर पूरी नजर बनाए थे। अब बाबा तो चुप हैं सो हैं अनुयायी सब भी चुप्पी साधे हुए है। कोरोना का संक्रमण काल है और सरकार ने लॉकडाउन कर दिया है। इसीलिए कुछ बोलना उचित भी नहीं है। वैसे भी अनुशासन पसंद हैं, कभी ढेर फड़फड़ाते नहीं।
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सेल्फ आइसोलेशन में भैया
्रकोरोना के संक्रमण से सतर्कता कहें या लॉकडाउन का पालन करना, भैया पूरी तरह सेल्फ आइसोलेशन में चल रहे हैं। घर में बिलकुल कैद हो गए हैं। हाथ को 36 बार तक सैनिटाइज कर रहे हैं। वैसे ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने अपना काम छोड़ दिया है। व्यवस्था पर नजर बनाए हैं। सरकार का क्या निर्देश आ रहा है, जिला प्रशासन किस रूप में इसे ले रहा है और यह कितना सही है! सब पर नजर। आपदा का यह दौर लूट-खसोट में न बदल जाए इसके लिए फोन पर से लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वे देश-विदेश का आंकड़ा देख कभी कुछ अधिक ही चितित हो जा रहे हैं। चिता सिर्फ महामारी के फैलने भर की ही नहीं, चिता तो लॉकडाउन की समय सीमा बढ़ाए जाने से अधिक है। वैसे भैया लॉकडाउन के शुरू के एक-दो दिन थोड़े क्रियाशील थे, लेकिन अब तो पूरी एहतियात बरते रहे हैं।
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साहब का चढ़ा तेवर
लॉकडाउन में लॉ एंड आर्डर वाले साहब के तेवर चढ़ गया है। कानून का सख्ती से पालन कराने के लिए अब वे किसी का कुछ भी सुनने तक को तैयार नहीं। वैसे भी जब सरकार ने कानून बना दिया है तो फिर सुननी किसकी है? नतीजा है कि कानून का पालन कराने के लिए लोगों को पीटने से भी परहेज नहीं करते। इसी दरम्यान उनका एक मामला फंस गया। सामने वाला सरकारी मुलाजिम था। वह जब तक कुछ कहता साहब सुनते क्यों लाठियां बरसा दी। स्थिति बिगड़ने लगी, साहब तलब हुए लेकिन होशियारी से मामले पर काबू पाया गया। चुकि लॉकडाउन चल रहा है तो बात कोई जाना, कोई न जाना। वैसे इसके बाद भी साहब के तेवर में कोई कमी नहीं आई है। सरकार ने आवश्यक सेवाओं को बहाल रखा है, उसके संबंधित लोग सड़क पर तो दिखेंगे ही। लेकिन सुनेगा कौन? यहां लॉ एंड आर्डर की ढाल है।
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सरकार पर भारी साहब
अपना जिला अपने आप में अनूठा है। भ्रष्टाचार से लेकर सरकार तक में यहां के लोगों ने अमिट छाप छोड़ रखी है। ट्रांसफर-पोस्टिग भी यहां कोई ऐसे-वैसे नहीं हो जाता। यहां पदस्थापित साहबों का भी अपना अंदाज है। भले ही सरकार ने आमलोगों को सूचना का अधिकार दे रखा है लेकिन साहब अपने कार्यालय की सूचना निकलने पर काफी सख्त हो जाते हैं। आम आदमी हो या मीडिया भई जो गोपनीय है वह तो गोपनीय है। सरकारी बाबूओं और साहबों ने कोई भूल कर दी है तो इसे ओपेन करने से क्या फायदा! अब सरकार सब कुछ को ओपेन करना चाहती है, पर यहां साहब की मर्जी चलती है। वे क्यों सब ओपेन करें। ऐसे भी साहब को अपनी सेहत का विशेष ख्याल है। जनता का काम भले ही छूट जाए लेकिन सुबह का खेल और व्यायाम नहीं छूटता। दफ्तर में भी साहब अपने डाईट का पूरा ख्याल रखते हैं।
Posted By: Jagran
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