कोविड- 19 की स्क्रीनिंग को बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए - डॉक्टर मेजर जनरल जे. के. एस परिहार (सेवानिवृत्ति)

नई दिल्ली. देश-दुनिया के जाने माने नेत्र रोग विशेषज्ञ और भारतीय सेना के पूर्व वरिष्ठ चिकित्सक रहे मेजर जनरल (सेवानिवत्ति) जे के एस परिहार ने कहा है कि कोरोना वायरस जैसी बीमारियों से निपटने के लिए दीर्घकालिक तैयारियों की जरूरत है. उन्होंने एक साझात्कार में कहा कि आज भारत लॉकडाउन के तीसरे सप्ताह में प्रवेश कर गया है. अब उपयुक्त होगा कि हम लॉकडाउन के विभिन्न प्रभावों का तर्क संगत विश्लेषण आत्म निरीक्षण करें और साथ ही अर्थव्यवस्था के महामारी के प्रसार और सूक्ष्म और मैक्रो स्वास्थ्य के पुनरुद्धार को रोकने के लिए भविष्य की रणनीतियों की योजना बनाएं. लॉकडाउन और स्वास्थ्य रणनीतियों के प्रत्यक्ष और लाभकारी परिणाम प्रदर्शित हो रहे हैं. यद्यपि 30 जनवरी को COVID-19 संक्रमन का पहला मामला भारत में देखा गया था. उपरांत 11 मार्च को 60 मामलों में से एक सर्वप्रथम संक्रमित रोगी की दुर्भाग्यवश मृत्यु हुई थी. लॉकडाउन के प्रथम दिन भारत में कोरोना संक्रमन के कुल 415 रोगियों सहित 10 पीड़ितों की असामयिक मृत्यु हुई थी. 7 अप्रैल तक यह संख्या 4778 रोगियों तक पहुँच गई है जिनमें 4263 सक्रिय और 133 मौत शामिल हैं ,इसके विपरीत विश्व स्तर पर यह संख्या 1348270 संक्रमित पीढ़ितों और 74806 मृत्यु तक पहुँच चुकी है.

निस्संदेह लॉकडाउन की प्रक्रिया ने COVID-19 संक्रमण की वैश्विक गति और भारत में कुछ अभूतपूर्व सामाजिक गतिविधियों और त्वरित प्रवृत्तियों के साथ सीधे जुड़ जाने वाले असामान्य उछाल के बावजूद भारी एवं सकारात्मक प्रभाव डाला है. महामारी की वर्तमान प्रवृत्ति 14 दिनों की ईंक्यूबेशन अवधि और 6 से 8 सप्ताह तक वायरस के जीवन चक्र से नियंत्रित होती है इसलिए संक्रमन के मामलों व्रद्धि अपरिहार्य है. लॉकडाउन के सकारात्मक प्रभाव के बावजूद, हमें अप्रैल के अंत तक लगभग ५०० मौतों और १२००० संक्रमन के मामलों का सामना करना पड़ सकता है. तदापुरांत जून माह के बाद महामारी के प्रकोप में गिरावट की संभावना है. संक्रमण के एक छोटी संख्या के साथ क्षेत्रीय परिप्क्षय तक सीमित रह जानें संभावना है बशर्ते संक्रमन रोकथाम के सभी आवश्यक उपाय कड़ाई से पालन किये जाएँ. हालांकि किसी भी वायरल महामारी के संचालन की अघोषित और घोषित प्रवत्ति अपरिहार्य है.
इसलिए सामाजिक दूरी, संदिग्धों की पहचान, अलगाव और प्रयोगशाला परीक्षण द्वारा COVID 19 की स्क्रीनिंग को सम्पूर्ण प्रयासों के साथ बहुत बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए ताकि महामारी के प्रभाव को न्यूनतम स्तर तक कम किया जा सके . पी.पी.ई. और प्रयोगशाला जांच किट की खरीद और सतत प्रवाह को पूरे देश में बनाए रखा जाना चाहिए. विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय यात्री, स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस, सार्वजनिक परिवहन ड्राइवरों आदि को टीकाकरण की दीर्घकालिक आवश्यकता को भविष्य में एक मानक प्रोटोकॉल के रूप में पालन किया जाना चाहिए . स्वास्थ्य सेवाओं की अवसंरचना को चरणबद्ध तरीके से अपग्रेड किया जाना अति आवश्यक है ,जिसके लिए केंद्र एवं और सभी राज्य सरकारों को अपने अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र पर आवंटित राशि को कम से कम सकल घरेलू उत्पाद के २.५% के स्तर तक बढ़ाना चाहिए ताकि ग्रामीण और जिला अस्पतालों में विशेष रूप से तीव्र श्वसन भागीदारी से जुड़ी संक्रामक रोगों की महामारियों के इलाज के लिए अधिक सुविधाएं विकसित की जा सके . हमें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इस उद्देश्य के लिए नर्सों, डॉक्टरों और सहयोगी स्टाफ, नामित वार्डों और आईसीयू की अधिक संख्या की आवश्यकता है .
अगला मुद्दा लॉकडाउन से एग्जिट प्लान है . चूंकि लॉकडाउन को COVID-19 के तेजी से प्रसार के चक्र को तोड़ने के एक त्वरित एवं अति आवश्यक उपाय के रूप लागू किया गया था, जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखते हुए प्रत्येक भारतीय ने पूर्ण उत्साह के साथ पूरे दिल से लॉकडाउन का समर्थन किया है . लॉकडाउन में अचानक प्रवेश के बावजूद, देशवासियों ने इन अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करने और हर तरह से घाटे को अवशोषित करने के लिए उच्चतम क्रम की एकजुटता, साहस और परिपक्वता का प्रदर्शन किया है जिसके हर भारतीय प्रसंशा का पात्र है. हालांकि सरकार ने बीच में तुरंत कार्रवाई की लेकिन विभिन्न वित्तीय पैकेजों और अन्य कार्रवाइयों का प्रभाव जमीनी हकीकत से दूर ही रहा.
लॉकडाउन जैसे किसी भी आपात उपाय को अनिश्चित काल के लिए नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इससे देश के आर्थिक विकास और अन्य सामयिक गतिविधियों प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. हालांकि महामारी की वर्तमान स्थिति को कम से 30 जून 2020 तक निरंतर प्रतिबंधों की जरूरत है और इन प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे उठाया जाना चाहिए. हमें इस तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्काल, मध्यवर्ती और दीर्घकालिक कार्य योजना बनाने की जरूरत है. सभी अंतर्राष्ट्रीय विमान परिचालन को 30 जून तक बंद रखना चाहिए, सभी घरेलू उड़ानें और रेलगाड़ियां, अंतरराज्यीय सड़क संचालन को 15 मई तक बंद रखना चाहिए और उस समय मौजूदा स्थिति के अनुसार धीरे-धीरे बहाल किया जाना चाहिए. हमें महामारी के सक्रिय हॉटस्पॉट के फोकस की पहचान करनी होगी और उन क्षेत्रों में संक्रमण को रोकने के लिए गंभीर प्रतिबंध और कार्य योजना लागू करनी होंगी. अंतरराज्यीय लॉकडाउन एक महीने और की अवधि के लिए जारी रखना चाहिए. संक्रमन के अधिक घनत्व वाले जिलों को जून के अंत तक अपने इलाके और राज्य के भीतर अलग-थलग किया जाना चाहिए .
अगला कदम मेट्रो शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को अधिकतम यद्यपि अभी तक संतुलित करने तथा COVID के प्रसार को रोकने में सामंजस्य रखना है. सबसे ज्यादा प्रभावित मेट्रो शहरों को शेष क्षेत्रों की तुलना में अधिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है . शहरों के भीतर स्तिथ संक्रमण के क्लस्टर हॉटस्पॉट को शहर के भीतर ही अलग थलक किया जाना आवश्यक है. हमें 30 जून तक चरणबद्ध और आंशिक लॉकडाउन पर भी विचार करना पड़ सकता है. इसे सप्ताह में तीन दिन लगाया जा सकता है जिसमें अगले दो से तीन सप्ताह तक एक रविवार और दो कार्य दिवस और बाद में जून के अंत तक सप्ताह में दो दिन शामिल हैं. काम का समय घटाकर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक किया जा सकता है और सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक रात कर्फ्यू और स्कूलों और कॉलेजों को 30 जून तक बंद रहना पड़ सकता है. सभी सामाजिक समारोहों, धार्मिक गतिविधियों, सम्मेलनों इत्यादि पर दिसंबर तक प्रतिबंध रहना चाहिए. किसानों को अपने ही गांवों में उचित सावधानी बरतते हुए काम शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए . हालांकि इस सम्पूर्ण प्रक्रिया की समय समय पर समीक्षा एवं संशोधन आवश्यक है और इस परिपेक्ष्य में भी अत्यंत सामयिक है.
अगला सबसे महत्वपूर्ण कदम नागरिकों के स्वास्थ्य मुद्दों से समझौता किए बिना आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने के लिए कार्य योजना की आवश्यक समीक्षा है. तरल एवं नगद मुद्रा सतत प्रवाह और वस्तुओं की उपलब्धता जन अर्थव्यवस्था की आवश्यक जीवन रेखा है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है . अगले दो वर्षों के लिए उद्योगों को कर छुट्टियों और प्रोत्साहनों के बेलआउट पैकेज भविष्य की मंदी को रोकने और निरंतर विकास को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है . सरकार को असरकारी क्षेत्रों के आर्थिक बोझ को आंशिक रूप में स्वीकार करना चाहिए जो की इन क्षेत्रों में कर्मचारियों की मजदूरी और वेतन का 30% तक हो सकता है.
हालांकि निजी क्षेत्र ने संकट के इस समय में बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ काम किया, लेकिन हाल ही में वहां कई अप्रिय प्रवृत्तियां उभरी हैं जिनके दुर्भाग्यवश परिणामों के चलते कर्मचारियों को मजबूरन अवैतनिक छुट्टी अथवा वेतन में कटौती का सामना करना पढ़ रहा है. इसके परिणामस्वरूप पूरे देश में मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के एक बहुत बड़े वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति विषम रूप से प्रभावित हो रही है. इसलिए महामारी के कारण निजी क्षेत्रों में नौकरियों के ऐसे वित्तीय दंड या नुकसान के खिलाफ सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति अध्यादेश का लागू करना अत्यंत आवश्यक है. दैनिक मजदूरी करने वाले कर्मचारी की आजीविका का हर तरह से शासकीय अनुदान की आवश्यकता है. सरकार को इस संकट प्रबंधन में लगे सभी स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस, मीडिया, सशस्त्र बलों और अन्य लोगों को मार्च से 30 जून तक आयकर में पूर्ण छूट प्रदान करनी चाहिए.

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