सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने से बन सकता है पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नया खतरा, पढ़े

कोरोना वायरस (Coronavirus) के खतरे को देखते हुए शहरी व ग्रामीण इलाकों में व्यापक स्तर पर सैनिटाइजर का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन पर्यावरण के जानकार इसे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नया खतरा बता रहे हैं।

खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में सैनिटाइजर के छिड़काव से कई छोटे कीट-पतंगे व तितलियां मर भी सकती हैं।
पूरी संसार में जिस तेजी से कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है, उससे शहर ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी भी इसकी चपेट में आ रही है। इसीलिए शहर हो या गांव सब स्थान सैनिटाइजर का छिड़काव किया जा रहा है। लेकिन क्या सैनिटाइजर का छिड़काव कोरोना वायरस को भगाने में सक्षम है? व क्या इसके उल्टा असर तो नहीं पड़ेंगे?
पर्यावरणविदों की माने तो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह बहुत ज्यादा खतरनाक साबित होने कि सम्भावना है। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में जिला पंचायत की तरफ से गांव-गांव में सैनिटाइजर का वितरण किया जा रहा है। सैनिटाइजर का छिड़काव घरों के आसपास कई स्थान पेड़ों में भी किया जा रहा है जिससे पर्यावरणविद बहुत ज्यादा चिंतित हैं। उनकी मानें तो इससे कई छोटे कीट-पतंगे व तितलियां भी मर सकती है जो पर्यावरण के मित्र होते हैं।
आइए आपको बताते हैं कि आखिर सैनिटाइजर पेड़-पौधों व छोटे कीट-पतंगों के लिए इतना खतरनाक क्यों है? दरअसल सैनिटाइजर बनाने में कई हानिकारक रासायनिक तत्वों का प्रयोग किया जाता है जो अत्यंत छोटे जीव जो पर्यावरण के मित्र हैं, उनके लिए यह बहुत ज्यादा खतरनाक साबित होता है। सैनिटाइजर में ट्राइक्लोसान नामक एक केमिकल होता है। इसके अतिरिक्त विषैला तत्व बेंजाल्कोनियम क्लोराइड भी होता है, जो कीटाणुओं व बैक्टीरिया को हाथों से बाहर निकाल देता है लेकिन इसके पेड़-पौधों पर व ग्रामीण इलाकों में ज्यादा छिड़काव का उल्टा प्रभाव भी होने कि सम्भावना है।
इन दिनों बसंत ऋतु का समय है व पर्वतीय क्षेत्रों में फलों के बगीचे फूलों से खिले हुए हैं। नैनीताल के रामगढ़, धारी, ओखल कांडा व भीमताल जैसे इलाकों में से आड़ू, पूलम, खुमानी के बगीचों में फूल ही फूल हैं व परागण की क्रिया जारी है। ऐसे में ज्यादा सैनिटाइजर का छिड़काव इन पेड़-पौधों पर भी प्रभाव डाल सकता है। जानकारों की माने तो ग्रामीण इलाके में ज्यादा सैनिटाइजर मधुमक्खियों, तितलियों व कीट-पतंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
सैनिटाइजर में खुशबू के लिए फैथलेट्स नामक रसायन का प्रयोग किया जाता है। इसकी मात्रा जिन सैनिटाइजर में ज्यादा होती है। वो इंसान ही नहीं बल्कि पेड़ पौधों व छोटे कीट पतंगों के लिए भी घातक साबित होने कि सम्भावना है। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में भी तेजी से सैनिटाइजर का छिड़काव किया जा रहा है व वैज्ञानिक तरीका के बिना ग्रामीण इलाके इसका प्रयोग कर रहे हैं, यह सारे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।

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