फिर लौटे दादी-नानी की कहानी वाले दिन

-लॉकडाउन में घरों में बंद बच्चे करते कहानी सुनाने की जिद

-लॉकडाउन ने लोगों को समझाया बंद घरों को दुनिया नहीं समझने का मर्म
-कहानियां से बच्चों को मिल रही महत्वपूर्ण जानकारी और सीख
-परिवार में बड़े-बुजुर्गों को मिल रहा स्वजनों का सानिध्य
जागरण संवाददाता, सुपौल : एक राजा था और एक रानी थी। वे सुंदर राजमहल में रहते थे। राजमहल के प्रांगण में खूबसूरत तालाब था, जिसमें राजहंस जलक्रीड़ा करते थे। कमल के फूलों से आच्छादित उस पोखर में रात के समय देवलोक से परियां घूमने के लिए आती थीं। यह कहकर पोपली हो चुकी दादी सांस लेने के लिए थोड़ी रुकती थीं कि पोते-पोती कहने लगते फिर क्या हुआ दादी। यह नजारा आज से 20-25 साल पहले तक हर घर का हुआ करता था। बीच में बैठी दादी या नानी चारों ओर से घेरे बच्चे दादी से कहानी को आगे बढ़ाने जिद करते थे। कहानी सुनने के लिए बच्चे दादी-नानी की हर बात मानते दादी-नानी भी अपने पोते-नाती पर गर्व करती कि कितने अनुशासित हैं हमारे बच्चे। बड़ों के आदर करने की सीख कहानियों के माध्यम से बचपन में पड़ जाती थी। लॉकडाउन में जब लोग घरों में बंद हैं तो एकबार फिर दादी-नानी की कहानी वाले दिन लौट आए हैं।
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लॉकडाउन में लोगों को परेशानी जरूर हुई है लेकिन यह कई सीख भी दे रहा है। लॉकडाउन ने लोगों को समझाया कि बंद घर ही दुनिया नहीं है लेकिन मजबूरी है कि लोग घरों में बंद है। घरों में बंद बच्चे अब टीवी सीरियलों से उकता गए हैं। अब वे दादी-नानी से कहानी सुनाने की जिद करते हैं। कहानियों से उन्हें कई महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। वहीं सीख भी मिल रही है। इस बहाने परिवार में बड़े-बुजुर्गों को स्वजनों का सानिध्य भी मिल रहा है।
बुजुर्ग सविता देवी बताती हैं कि समय की रफ्तार चलने की होड़ में लोगों से कई चीजें छूटती चली गई। और तो और लोगों के परिवार भी छूट गए। परिवार की परिभाषा पति-पत्नी और बच्चों तक सिमट गई। सामाजिक कई मान्यताएं समाप्त हो गई, बड़े-बुजुर्गों का सम्मान खत्म हो गया। बच्चे भी खुद में इतने व्यस्त हो गए कि पढ़ाई से छूटे तो टीवी और मोबाइल की दुनिया में खो गए।
सुलोचना देवी की मानें तो जिदगी की भागमभाग में जो चीजें छूटती जा रही थी वह लॉकडाउन में करीब आ रही है। सबसे बड़ी बात कि परिवार में एकसाथ बैठना मुश्किल हो गया था। परिवार के सदस्यों को एकसाथ बैठने का समय नहीं था, परिवार में बुजुर्गों के लिए तो बिल्कुल ही समय नहीं था। अब समय ही समय है। अब तो बच्चे भी कहानी सुनाने की जिद करते हैं।
Posted By: Jagran
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