शहरनामा : किशनगंज ::

नेताजी थोड़े सॉफ्सिटिकेटेड जो हैं

कोरोना वायरस को लॉकडाउन किए जाने के बाद जनता अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि की तलाश में हैं। अखबारों व सोशल मीडिया में उनकी अनुपस्थिति से उनके कार्यकर्ता भी मायूस होने लगे हैं। सब्जी मंडी में सुबह-सुबह हाथ में थैला लिए पहुंचने वाले लोगों की दिनचर्या में भी उनकी खोज शामिल हो गई है। एक बुजुर्ग ने तंज कसते कसा, हो सकता है कि लॉकडाउन में पटना या दिल्ली में ही फंस गए होंगे। इसपर एक युवक ने भी तंज कसा, चचा इस समय नेताजी सोशल डिस्टेंस कुछ ज्यादा ही मेंटेन करने लगे हैं। सब्जी मंडी में चर्चा चल पड़ी तो सबलोग शुरू हो गए। इस बीच लोगों ने कहा कि चुनाव जीतने के बाद जनता को कौन याद करता है, अपने वाले तो पहले से भी थोड़े सॉफ्सिटिकेटेड रहे हैं। इतना तो समझना ही चाहिए कि नेताजी नेपथ्य में हैं तो हमलोग भी कुछ दिन एकांतवास में ही रह लें।
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फीकी न पड़ जाए चमक
कोरोना वायरस का खौफ और 21 दिनों का लॉकडाउन। घर में बंद रहें या बाहर निकलें! इसको लेकर आफत बरकरार है। घर में पारिवारिक झमेलों से भी दो-चार होना पड़ रहा है और बाहर सोशल डिस्टेंस का झोल। यह कोरोना अब समाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए मुसीबत ही बन गया है। जमाने बाद सब्जी खरीदने के बहाने निकले नेताजी कुछ इसी अंदाज में उद्गार व्यक्त कर रहे थे। नेताजी को चिता इस बात की भी है कि वैश्विक महामारी के बीच आम जनता के सामने चुनौतियां कई हैं। इसके लिए उनका जनता के बीच जाना जरूरी है। लेकिन मुसीबत की इस घड़ी में सोशल डिस्टेंसिग बनाए रखना भी है। आगे विधानसभा चुनाव है और इस तरह घर में बैठे रह गए तो जनता के सामने उनके चेहरे की चमक कैसे बरकरार रहेगी। एक बार अगर यह चमक फीकी पड़ गई तो फिर पांच साल का मेहनत बेकार हो जाएगा।
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फोटो सेशन पर ब्रेक
लॉकडाउन में राहत के नाम पर खाद्य सामग्री वितरण कर फोटो व वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जाने लगा था। ग्रास रूट का सोशल वर्कर बताकर लोगों द्वारा टोले-मुहल्ले में भीड़ लगाकर खूब फोटो व वीडियो बनाए गए। कुछ जिम्मेदार लोगों ने तो अपने घर से ही पैकेट भेजने की व्यवस्था की, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो भीड़ के साथ विक्ट्री साइन व पाउट बनाकर सेल्फी अखबारों में छपाने को बेचैन रहे। हालांकि देर से ही सही मगर जब प्रशासन जगा तो सोशल मीडिया पर चेहरा चमकाने की होड़ में जुटे लोगों पर एकाएक ब्रेक लगा दिया। पुलिस-प्रशासन ने तो साफ शब्दों कह दिया है कि अब राहत सामग्री जरूरतमंदों तक वे खुद पहुंचाएंगे, किसी को मदद करनी हो तो प्रशासन के सहयोग से करें। फोटो सेशन वाले लोगों की मायूसी आम हो गई और कहने लगे हैं, प्रशासन का अपना अलग ही लेबल है।
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गांव-जवारी का टूटा भ्रम
वे खाकीधारी हैं। बड़ा बाबू के रूप में जाने जाते हैं। अपनी चमक बनाए रखने की विधा भी उन्हें अच्छे से आती है। कुल मिलाकर वे इसके माहिर खिलाड़ी हैं। अभी खुद को साहेब के गांव-जवारी बताकर माहौल बना रहे थे। लेकिन कहते हैं न सिर्फ गाल बजाने से काम नहीं चलता है, काम भी करना पड़ता है। हुआ वही, एक चूक होते ही साहेब ने साइडलाइन कर दिया। लोगों के बीच से उनके साहेब का गांव-जवारी होने का प्रभाव खत्म होने लगा। इसके बाद उन्होंने इसकी काट खोजी। मातहतों व सहयोगियों के बीच नया शिगूफा छोड़ने लगे हैं। साइडलाइन होने को खुद की मर्जी बताते हुए तनाव से दूर होने की बात कहने लगे। सामने तो नहीं पीठ पीछे सहकर्मी कहने लगे हैं, साहेब बाहर से सॉफ्ट, अंदर से कड़क हैं। काम करने वालों को शाबासी देते हैं और जो काम नहीं करें, उसका हाल ऐसा ही करते हैं।
Posted By: Jagran
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