शहरनामा ::: अररिया

कैसे कहें क्वारंटाइन में रहें

आम लोग अगर राज्य के बाहर से आते हैं तो उन्हें तुरंत क्वारंटाइन सेंटर या फिर होम क्वारंटाइन में रहने की हिदायत दी जाती है। लेकिन अगर कोई विशेष आदमी आ जाए तो..! बड़े साहब बड़े संशय में हैं। क्योंकि एक बड़े जनप्रतिनिधि बाहर से यहां पहुंच गए हैं। साहब को इसकी जानकारी है। दिक्कत यह कि साहब जनप्रतिनिधि को होम क्वारंटाइन के लिए भी कहेंगे तो वे नाराज हो जाएंगे। साहब करें तो क्या करें! अगर होम क्वारंटाइन नहीं करते हैं और ऊपर कोई शिकायत कर दे तो परेशानी बढ़ जाएगी। ऐसे में साहब लगातार अपने अधिकारियों के साथ मंथन कर रहे हैं। कोई उन्हें सलाह दे रहा कि जनता के सेवक से मिलकर उनसे माफी मांगते हुए कहिए कि आपको होम क्वारंटाइन में सिर्फ कागज पर रहना है। इससे आपका काम भी हो जाएगा और वे नाराज भी नहीं होंगे। साहब ऐसा करने की हिम्मत जुटा रहे हैं।
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सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े
वर्दी वाले साहब के साथ सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने वाली बात हो गई है। जब से यहां योगदान दिए हैं तब से कोरोना ने जीना हराम कर दिया है। क्षेत्राधिकार में कोई भी घटना-दुर्घटना होने पर पहुंचना मजबूरी है। योगदान के साथ ही पहले तो हर दिन कोरोना बढ़ाने वाले में जिस जमात का नाम आया है उसकी खैरियत रिपोर्ट के लिए प्रतिदिन जाना मजबूरी थी। अब अचानक से उसे पकड़ने की जिम्मेदारी भी मिल गई। अब करें तो क्या करें! मन मसोसकर वहां दलबल के साथ पहुंचे। लेकिन, जमात वाले ने अंग्रेजी में क्लास लगाई तो झल्ला गए। बोले, दिनभर सैनिटाइजर लगाकर पागल हो रहे हैं ऐसे में ये सब अंग्रेजी बोलकर और पगला देगा। काफी मशक्कत के बाद अपने काम को पूरा करने में कामयाब हुए। उस दिन से अब थोड़ी-थोड़ी देर में अपने हाथ में सैनिटाजर डालते रहते हैं कि जमात वाले का असर न जाए।
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वर्दी वाले की हनक
नगर के प्रधान होने के नाते शहर में इज्जत भी है। इतना ही नहीं विनम्र स्वभाव के होने के कारण सभी लोगों के बीच खासे लोकप्रिय भी हैं। उनके अधीनस्थ काम करने वाले कर्मचारी जरूरी सेवा में कार्यरत की श्रेणी में आते हैं। कर्मचारी जरूरी सेवा के लिए ही जा रहे थे तभी डंडाधारी दो-तीन वर्दी वाले ने चौक पर पकड़ लिया। उसका जुर्म बताया- लॉकडाउन में सड़क पर चले कैसे? फिर क्या कर्मी ने भी तुरंत अपने प्रधान को फोन लगाया कि आपके कहने पर वे कोरोना को भगाने के लिए नगर को स्वच्छ करने में लगे हैं और यहां वर्दी वाले ने पकड़ लिया है। नगर प्रधान जब पहुंचे तो भी वर्दी वाले नहीं माने। साफ तौर पर कह दिया किसी भी हालत में नहीं छोड़ेंगे। काफी मशक्कत के बाद ऊपरी आदेश पर छोड़ा। दुखी नगर प्रधान ने जिले के बड़े साहब को जानकारी देकर दुख जताया है।
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नेताजी घर पर नहीं है
बच्चों का भविष्य बनाने वाले संगठन से जुड़े नेता अब ढूढ़ते नहीं मिल रहे हैं। जिस सोच के साथ सरकार से दो-दो हाथ करने की तैयारी में थे वह कोरोना में समाहित हो गया। कोरोना का कहर का जब असर बढ़ा तो पहले तो गांव-गांव जाकर साबुन व हैंडवाश वितरण कर अपने आंदोलन को जारी रखने की घोषणा की। अब जब कोरोना का दौर लंबा हो चला तो हालत पस्त हो गई है। अभी विपत्ति में संगठन से जुड़े लोग भी उनसे मदद की मांग करने लगे हैं। फोटो अखबार में छपने पर अपने घर के आसपास के भी जरूरतमंद घरों में पहुंचने लगे हैं। एक ओर अपने संगठन से जुड़े लोगों से भी सुनना पड़ रहा है कि कब पैसा मिलेगा और दूसरी ओर घर पर हर रोज 10-20 आदमी मदद मांगने पहुंच रहे हैं। बेचारे को घर में रहते हुए भी कहलाना पड़ता है कि नेताजी नहीं हैं।
Posted By: Jagran
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