सारण्य से दूर हुआ अरण्य, बचे सिर्फ .05 फीसद वन

पृथ्वी दिवस पर विशेष:

- सड़क और घर निर्माण के लिए बड़ी संख्या में निरंतर काटे जा रहे हरे-भरे पेड़
-दो लाख पौधारोपण का लक्ष्य
जासं, छपरा : सारण की भूमि वनों के मामले में काफी समृद्ध थी। यहां विचरते हिरणों के कारण इसकी प्रसिद्धि थी। हिरण (सारंग) एवं वन(अरण्य) की वजह से इसे सारण्य कहा जाता था। जो बाद में सारण हो गया। इसका अधिकांश क्षेत्र वनों से घिरा था। प्रकृति की गोद में बसे इसी वन क्षेत्र में दधिचि ऋषि ने तपस्या भी की थी। कुंभज ऋषि व अगस्त मुनि की तपोभूमि भी यहां थी। लेकिन आज सारण्य से अरण्य ही गायब हो गया है। अब मात्र .05 फीसदी ही वन क्षेत्र रह गया है। निरंतर पेड़-पौधों की कटाई जारी है।
खैरा में मोटरसाइकिल के धक्के से अधेड़ की हुई मौत यह भी पढ़ें
सारण में बांध, तटबंध व सड़कों के किनारे, वन व पर्यावरण विभाग के लगाए गए पौधे ही दिखते हैं। इसमें से भी सड़क चौड़ीकरण एवं पुल -पुलिया के निर्माण में पेड़ की कटाई की जा रही है। इससे बहुत तेजी से वन क्षेत्र घट रहा है। हालांकि पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। लोग स्वयं भी पौधे लगाने लगे हैं। वन विभाग भी अभियान चलाकर पौधे लगा रहा है। लेकिन छपरा-पटना एनएच का निर्माण न होने से वन विभाग की ओर से यहां नए तरीके से पौधारोपण भी नही किया जा रहा है। वन विभाग का इस वर्ष करीब दो लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। ये पौधे सड़क किनारे से लेकर बांध आदि स्थानों पर लगाए जाएंगे। इधर लोग भी जगह-जगह पौधे लगाने लगे हैं। खासकर युवाओं की इस ओर रुचि बढ़ी है। उनमें यह चिंता हुई है कि प्रदूषण से धरती को बचाने और मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पेड़-पौधे बहुत जरूरी हैं। इसलिए पौधे लगाने के साथ पेड़ों की देखभाल भी करना हमारी जिम्मेदारी है। इस बदलाव का असर आने वाले समय में जरूर दिखेगा।
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

अन्य समाचार