जिएं तो जिएं कैसे

अस्पताल में अफरा तफरी का माहौल था. हर ओर भय में जकड़ी निगाहें और चिंता में डूबे चेहरे थे. ऐसा समय आ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा भी ना था. आज तक जितनी पीढ़ियां पैदा हुई कौन जानता था कि एक यह वक्त भी आएगा जब इंसान ही इंसान का दुश्मन लगने लगेगा और वह भी बिना किसी दोष के. कोरोना जैसे छोटे से वायरस ने किसी एक समाज को नहीं अपितु समूची दुनिया को हिला कर रख दिया. बीमारी ऐसी जो हर रोज तेजी से फैल रही और जिसका कोई इलाज भी नहीं. कोरोना पर देश में गंभीरता कम और चुटकुले ज्यादा बनने लगे. कई अफवाहें भी उड़ी. लेकिन जरूरी नहीं कि हर अफवाह केवल अफवाह ही हो. अनपढ़ों के मोहल्ले से आती अफवाहें और उनसे उपजी आशंका और भय का आधार झूठा हो यह जरूरी नहीं.

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