बुराई से दूर रहने का संदेश देता है रमजान

इस्लाम धर्म के सबसे पाक महीनों में शुमार रमजान का महीना इस वर्ष शनिवार से शुरू होने वाला है। इस्लाम धर्म के पांच अरकान (स्तम्भ- कलमा, नमाज, रोजा, जकात, हज) में एक रोजा भी है, जो रमजान के महीने में रखा जाता है। रमजान के पूरे महीने (29 या 30 दिन) तक मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं, कुरआन पढ़ते हैं। रोजा सिर्फ पेट का नहीं, आंख और कान का भी होता है। इस पवित्र महीने में कोई गलत काम नहीं करना चाहिए। रमजान बुराई से दूर रहने का संदेश देता है। रमजान के महीने में झूठ से तौबा करनी चाहिए। किसी को अपशब्द नहीं कहना चाहिए। रमजान का पाक महीना प्रेम व भाइचारे का प्रतीक है। इस माह अमीर-गरीब का फर्क मिट जाता है।


मजलिस उल उलमा के कार्यालय सचिव इनायतुल्लाह कासमी बताते हैं कि यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत करना भी सिखाता है। रमजान सेवा की भावना जगाने का काम करता है। जिस खुदा ने हमें बनाया है उसके लिए त्याग करना हमारा फर्ज है। रमजान का यह महीना सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसके और भी कई मायने हैं। रमजान के महीने में किसी पर गुस्सा करना हराम माना जाता है।
इस्लाम को मानने वालों को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि वह जो कुछ भी करते हैं उस पर अल्लाह की हमेशा नजर रहती है। यह महीना संयम बरतने का संदेश देता है। हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का मतलब रोजा नहीं है, बल्कि अल्लाह के बनाए गए नियमों के अनुसार खुद को ढालना ही रमजान कहलाता है।
रमजान के महीने में रोजे रखना 7 साल की उम्र के बाद से हर सेहतमंद मुसलमान पर फर्ज (जरूरी) है। माना जाता है कि रमजान के महीने में अल्लाह अपने बंदों की हर जायज दुआ को कुबूल करता है और उनको गुनाहों से बख्शीश (बरी) करता है।
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मुस्लिम समुदाय के लोग साल भर रमजान का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यताएं हैं कि इस महीने अल्लाह अपने बंदों को बेशुमार रहमतों से नवाजता है और दोजख (जहान्नम) के दरवाजे बंद कर के जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल देता है।
मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए रमजान का महीना इसलिए भी जरूरी होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस महीने की गई इबादत का सवाब बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना मिलता है। रमजान में रोजा नमाज के साथ कुरान पढ़ने की भी काफी फजीलत है, क्योंकि रमजान के महीने में 21वें रोजे को ही पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर ही अल्लाह ने कुरआन शरीफ नाजिल किया था। यानी कुरआन अस्तित्व में आया था।
Posted By: Jagran
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