गांव में मिला काम, दिल्ली- मुम्बई को सलाम

छौड़ाही, बेगूसराय। दिल्ली से लौटे कामगारों ने अपना दर्द बयां किया। उनका दर्द सुनकर किसी का भी कलेजा फट गया। खेत में बैठे पंकज दास, उनके पिता देबू दास ने अपनी व्यथा सुनाते हुए भाव विह्वल हो गए। कहा, हम सभी गृह निर्माण कार्य में ईट- सीमेंट ढोने वाले गरीब कामगार हैं। चार-पांच सौ रुपये कमा लेते थे। गांव में रह रहे बाल बच्चे सब मजे में थे। परंतु, कोरोना महामारी के चलते देश में लॉकडाउन लागू होते ही जीवन का मुश्किल दौर शुरू हो गया और हमलोग दो रोटी के लिए भी मोहताज हो गए। अब गांव के बाबू-भैया से कह कर दो-चार कट्ठा जमीन ठेका-बटाई पर ले लिए हैं। पत्नी के खाता में भी सरकार ने एक हजार रुपये भेजी है। खेती कर गांव में ही बाल बच्चे के साथ अब खुश हैं। कहा, अब जो हो जाए, थोड़ी तकलीफ सह लेंगे, परंतु, दिल्ली नहीं जाएंगे।

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छौड़ाही प्रखंड में सिकंदर कुमार, मो. एजाज, दिनेश कुमार, अजीम, रामबदन साह, फूलो देवी, किरण देवी, विनोद कुमार, रामपुकार दास, रामकुमार पासवान, महेश राम, रामेश्वर कुमार, रामबदन सहनी भी अपनी आपबीती बताते हुए कुछ ऐसी व्यथा सुनाई। ये लोग कटक, बंगलुरु, लुधियाना, जालंधर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, गुवाहाटी आदि शहरों में रहकर चाय पान की दुकान, घरेलू काम, गृह निर्माण आदि में दैनिक मजदूरी करते हैं। लगभग 15 साल से वहां रह रहे थे। परंतु, विकट समय में किसी ने साथ नहीं दिया। मनोज दास, अरविद कुमार साह, राजेंद्र पासवान, अवधेश कुमार राम आदि ने बताया कि गांव में सात सौ रुपये कट्ठा जमीन ठेका पर लेकर सब्जी की खेती किए हैं। बाल बच्चे के साथ मेहनत कर रहे हैं। सिर्फ छौड़ाही प्रखंड में ही 30 से ज्यादा ऐसे लोग मिले जो दिल्ली, मुंबई की आस छोड़ ठेका-बटाई पर खेती प्रारंभ कर दिया है। किसान सलाहकार अनिस कुमार, सुनील चौरसिया, विजय कुमार रजक बताते हैं कि दर्जनों लोग हमसे संपर्क कर ठेका-बटाई पर जमीन दिलवाने के लिए संपर्क किए हैं। किसी का इरादा सब्जी उगा कर खुद बेचने का है तो कोइ यहां मजदूरी कर आमदनी का उपाय सोच रहे हैं।
Posted By: Jagran
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