रोजा दिन भर भूखा रहने का नाम नहीं

खगड़िया। रोजा इस्लाम धर्म के पांच बुनियादी फर्ज में से एक है। रोजा भी अल्लाह ताला के हुक्म में से एक बड़ा हुक्म है। अल्लाह ताला फरमाता है कि तुम पर उसी तरह रोजा फर्ज किया गया है जैसा की तुमसे पहले लोगों पर फर्ज किया गया था। ताकि तुम लोग नेक और परहेजगार बन जाओ। रोजा हर मुसलमान बालिग मर्द, औरत पर फर्ज है। बीमार और मुसाफिर को रोजा रखने में ज्यादा तकलीफ बढ़ने का खतरा हो तो रोजाना नहीं रखें। लेकिन बाद में रोजा को पूरा करना फर्ज है।

जमीयत उलमा ए हिद के जिला महासचिव कारी. मु सरफराज आलम ने कहा कि रोजा सिर्फ पेट को दिनभर भूखा रखने का नाम नहीं है बल्कि रोजा पूरे शरीर का होता है। हाथ का रोजा यह है किसी कमजोर पर जुल्म न करें, हाथ से कोई बुरी चीज न छुएं। आंख का रोजा है कि आंख से कोई भी बुरी या गंदी चीज देखने की कोशिश ना करें। कान का रोजा है कि गलत या बुरी बात ना सुने। दिल व दिमाग का रोजा यह है कि बुरी बात सोचने से बचें। रोजा अल्लाह ताला ने तमाम मुसलमानों पर एक महीना रमजान में फर्ज किया है। इसलिए रोजा रखकर हमारा बंदा नेक और परहेजगार बन जाए। रोजा का दूसरा मकसद यह भी है कि अमीर आदमी भी जब रोजा रखता है तब जाकर उसे गरीब की भूख, तकलीफ, परेशानी समझ में आती है। भूख क्या होता है। जब गरीब भूखा रहता है तो उसको कितनी तकलीफ होती होगी। उसका एहसास अमीर लोगों को भी होता है। अमीर लोगों को जब भूख की तकलीफ का अहसास होगा तो गरीबों और परेशानहाल लोगों की मदद करने का उनमें शोक पैदा होगा। रोजा रखने से रूहानी फायदा के साथ-साथ जिस्मानी स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
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Posted By: Jagran
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