लखीसराय से शहरनामा :::

वर्दी है तो सेटिंग है

केंद्र सरकार ने लॉकडाउन भले ही कोरोना महामारी को रोकने के लिए किया है, लेकिन कई कारणों से आम लोग काफी परेशान हैं। लोगों की परेशानी समझने वाला कोई नहीं है। कानून का पालन करते हुए लॉकडाउन की सख्ती का जिम्मा सरकार ने पुलिस वालों को दे रखा है। वर्दी की रौब दिखाने वाले पुलिसकर्मी इस लॉकडाउन में भी अपनी सेटिंग खोज ले रहे हैं। नया बाजार इलाके में एक व्यक्ति को अपने अ‌र्द्धनिर्मित घर को पूरा करने की चिता थी। बेमौसम बारिश के कारण उन्हें जल्दी थी। लॉकडाउन का अड़ंगा भी था। उन्होंने काफी दिमाग लगाया। जब कुछ नहीं सूझा तो फिर वर्दी वाले ही उनके काम आए। पहले पांच हजार में घर की ढलाई शुरू कराया और जब पड़ोसियों ने विरोध करके रोकना चाहा तो 10 हजार और लेकर खुद खड़ा होकर ढलाई पूरा करा दिया। वर्दी वाले बुरे ही नहीं होते इनकी तरह अच्छे भी होते हैं।
इलाज के आभाव में अस्पताल के गेट पर आशा कार्यकर्ता की मौत यह भी पढ़ें
-------
चहेते की चली गई कुर्सी
वे योजनाओं के मालिक हैं। सरकार ने ही उन्हें विकास लिखने की पावर दे रखी है। पर इन दिनों योजनाओं के इस मालिक का खराब समय चल रहा है। वर्षो से लगी उनकी कुंडली को बड़े साहब तो पहले तोड़ दी। योजना वाले बौखलाए साहब और उनकी मंडली कुछ राहत लेते तब तक एक चहेते कुर्सी भी चली गई। बड़े साहब ने चहेते कर्मी की सेवा समाप्त ही कर दी। करोड़ों के वारे-न्यारे में योजनाओं के मालिक बने पदाधिकारी कालिख से बच नहीं पाएंगे। यह सोचकर काफी छटपटा रहे थे। बड़े साहब ने थोड़ी दया दिखाई है। इसको लेकर प्रशासनिक महकमे और सरकारी कार्यालयों में कर्मियों के बीच चर्चा तेज है। संविदा वाले भाई साहब इन दिनों करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। जय सुशासन बोलकर वे अब शेष जिदगी मजे में काटेंगे। लेकिन योजनाओं के मालिक बने पदाधिकारी की गर्दन बचेगी यह बहुत आसान भी नहीं दिख रहा है।
-------
गद्दारी या वफादारी
मास्टर साहब नियमित शिक्षक हैं। अपने संघ के अध्यक्ष भी हैं। विभागीय सिस्टम के तहत कायदे, कानून के प्रति वफादार हैं। लेकिन उनके सहयोगी शिक्षक समझ नहीं पा रहे कि अध्यक्ष जी उनके प्रति वफादार हैं या विभाग के प्रति। नियोजित शिक्षक हड़ताल पर हैं। सरकार कोई वार्ता नहीं कर रही है। नियोजित शिक्षकों के नेता किसी तरह वार्ता करने को लेकर आतुर दिख रहे हैं। समय भी प्रतिकूल है। कोई मध्यस्थता करने वाला भी आगे नहीं आ रहा है। ऐसे में अध्यक्ष जी की ने गजब ही कर दिया। अपनी मैडम को विभाग की अपील पर योगदान करा दिया। मैडम नियोजित शिक्षक हैं। शिक्षकों की अगुआई करने वाले अध्यक्ष जी अपनी ही बिरादरी के आंदोलन को कुचलने का काम किया या फिर सरकार की अपील का पालन करके वैश्विक महामारी के बीच अपना सामाजिक दायित्व निभाया? ऐसे कई सवालों के बीच साथी शिक्षकों की आंखें उनके प्रति लाल है।
-------
साहेब ने बदला ठिकना
प्रखंड के बड़े साहब इन दिनों कोतवाल से नाराज हैं। उनकी जबावदेही पूरे क्षेत्र की है लेकिन उन्होंने आजकल अपना ठिकाना बदल लिया है। अब वे नया बाजार इलाके वाले चौकी पर अपनी बैठकी करते हैं। कोतवाल साहब एक बात को लेकर काफी चर्चित हैं। वे किसी की सुनते नहीं हैं। हां यदि अपने कैप्टन या उप कैप्टन का आदेश मिले तो मरी हुई मछली को भी पानी में डालकर उसको तैराने का प्रयास करते हैं। अन्य किसी की क्या हैसियत जो उनसे जिदा मछली भी तैरवा ले। लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराने के मामले में भी वे हीरो साबित हो रहे हैं। हालांकि पोषाहार वाली मैडम के मामले में उनके सहकर्मी के अड़ियल भाव ने थोड़ी साख भी गिरा दी है। प्रखंड वाले बड़े साहब इन्हीं कारणों से नाराज हैं। पहले सुबह की चाय कोतवाल के संग होती थी पर अब वो दोस्ती सिर्फ यादें बनकर रह गई।
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

अन्य समाचार